Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्ताव
॥३२५॥
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यगईए संमुहमागच्छन्तं पहियलोयं तुरयपउत्तिमापुच्छंतो कम्मधम्मसंजोएण पत्तो तं चेव गाम, पुट्ठो य तन्निवासि- देशावकाजणो, तेणावि समप्पिया तुरगा, कहिओ य चोरवुत्तंतो, सागरदत्तेणऽवि साहिओ गामलोगस्स नियमवइयरो, अओ शिके सागजिणिंदधम्मपसंसा ॥
रदत्तकथा. अह सागरदत्तेणं चिंतियमुप्पन्नभवविरागेण । जह जिणधम्मपभावो पञ्चक्खं चिय मए दिट्रो॥१॥ ता किं अजवि वामूढमाणसो तिक्खदुक्खदायारं । घरवासं पासंपिव सयखंड नेव तोडेमि? ॥२॥ इय चिंतिऊण चत्ताई तेण सवाणि पावठाणाणि । गहिया जिणिंददिक्खा सिवसुहभागी य जाओ य॥३॥ इय इंदभूइ ! सिक्खावयस्स बीयस्स पालणे भणियं । फलमत्तो तइयं पुण भणिमो सिक्खावयं ताव ॥४॥१०॥ आहारदेहसकारवंभवावारचागनिष्फणं । इह पोसहंति बुचइ तइयं सिक्खावयं पवरं ॥१॥ दुविहं च इमं नेयं देसे सवे य तत्थ सबंमि । सामाइयं पवजइ नियमा साहुब उवउत्तो ॥२॥ अप्पडिदुप्पडिलेहियऽपमज्जसेजाइ वजई एत्थ । सम्मं च अणणुपालणमाहाराईसु सवेसु ॥३॥ पोसेइ कुसलधम्मे जं ताहाराइचागणुटाणं । इह पोसहोत्ति भण्णइ विहिणा जिणभासिएणेव ॥४॥. पाणंतिगोवसग्गेऽवि पोसह घेत्तु जे न खंडति । जिणदासो इव ते सुरसुहाई मोक्खं च पावंति ॥५॥ गोयमसामिणा भणियं-भुवणेकदिवायर! को एस जिणदासो?, भयवया वागरियं-साहेमि, वसंतपुरे न
॥३२५॥
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