Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 649
________________ Jain Education gift निरइयारे दिविए भावओ पवत्तंमि । होइ सिरी मोक्खोविय जिणपालियसावगस्सेव ॥ ४ ॥ गोयमसामिणा भणियं - जयनाह ! को एस जिणपालिओ ?, सामिणा कहियं - भो ! निसुणेसु पुंड बड्डुणनयरे विकमसेणो राया, मयणमंजूसा से पट्टमहादेवी, सुबुद्धी अमच्चो, तत्थ य नयरे जिणभावियमणो जिणदत्त सेट्ठिस्स मुलसाए भारियाए पुत्तो जिणपालिओ नाम साबगो परिवसइ, तेण य गुरुसमीवे दिसागमणपरिमाणचयं गिण्हंतेण पन्नासं पन्नासं जोअणाई चउसुविदिसासु मुक्काई, एवं सो उत्तरोत्तरगुण भासं कुणमाणो अच्छइ । इओ य विकमसेणनराहिवस्स पञ्चंतदेसवत्ती सीहसेणो नाम भिल्लाहिवई देसंविविउमादत्तो, तस्स य उपरि महया संरंभेण हरिकरिरहजोहवूह परिगओऽविक्खेवेण चलिओ विकमसेणो, भणिओ य सुबुद्धिणा अमचेण - देव ! किं तस्स गोमाउयस्स उवरिं तुम्हे विजयजत्तं करेह ?, तुम्ह पयपयावपडिहयपरकमस्स का तस्स सत्ती ?, ता नियतह नयरी - हुत्तं देह ममाएसं जेण तहा करेमि जहा पडिच्छइ सिरेण सो देवस्स सासणंति वृत्ते चउरंगिणीसेणासणाहो पेसिओ अमचो, सीहसेणोऽवि तं सबलवाहणं इंतं चारपुरिसेहिंतो नाऊण विसमगिरिकडगं घेत्तूण ठिओ, अमचोऽवि तहाटियं पेच्छिऊण जुज्झिउमपारयंतो तमेव गिरिकडगं परिवेढिऊण- तत्थेव आवासिओ, दुग्गमग्गत्तणओ य धन्नघयाई महग्घीहूयं सिविरे, जणपरंपराए य निसुणियमेयं जिणपालिएण, तओ भूरिघयभरियदोट्टियगाणं करभेसु समारोबिय वणियजणसमेओ चलिओ सो सिविराभिमुहं, सोय सीहसेणो दुग्गे निरुद्धजबसाइपयारो For Private & Personal Use Only nelibrary.org

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