Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

View full book text
Previous | Next

Page 664
________________ श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः ॥ ३२२ ॥ Jain Education लोगा ! आगच्छेह भगवंतं वंदिउति भणिए तकालमिलियपुरजणसमेओ समागओ राया ममंतियं । इओ य सो कामदेवो पासायतलासीणो एगाभिमुहं जणनिवहमवलोइय परियणमापुच्छेद- किं नं देवाणुप्पिया ! एस पुरजणसमुदओ एगदिसाए नीहरइ ?, एयममुवलभिय साहेह, तेहिं निच्छिऊण निवेइयं, जहा - तिहुयणेकनाहो जिणो समोसढो तदणवडियाए पुरलोगो वच्चर, तओ सो सम्प्पन्नसद्धाइसओ पहाओ चंदणोवलित्तगत्तो चाउर टरहारूढो अप्पमहग्घाभरणभूसिओ सियकुसुमदामोवसोहिओ निग्गओ नयराओ, समोसरणासन्ने य ओइन्नो रहवराओ पमुक्ककुसुमदामो परिहरियतं बोलो कयमुहसुद्धी एगसाडीएणं उत्तरासंगेणं चक्खुफासे अंजलि - पग्गणं मणसो एगत्तीभावेण य पविट्टो समोसरणे, तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं काऊण वंदिओ अहं, उवविहो सट्टाणे, निसामिए धम्मे संजायधम्मपरिणामो संमत्तमूलाई पंचाणुवयाई तिन्नि गुणवयाई चत्तारि सिक्खावयाई भावसारं पडिवज्जिय गिहमुवगओ, पालेइ निरइयारं सावगधम्मं । अन्नया य कुटुंबचिंताए जेट्ठपुत्तं ठवित्ता पोसहसालाए पडिमा परिकम्मकरणट्टा सामाइयं पडिवज्जिय ठिओ रयणीए काउसग्गेणं, एत्थंतरंभि तब्भावनिश्चलत्तं परिक्खिउं एगो तस्स समीवे ठाउं सुरो सरोसं इमं भणइ रे रे वणियाहम ! धम्मम्ममेवं समुज्झसु जवेणं । पाविट्ठ कोऽहिगारो तुह एरिससाधुचेट्ठासु ? ॥ १ ॥ मा पविसअकाले चिय कयंतमुहकुहरमुग्गदाढिलं | मम वयणं अवगन्निय पुत्तकलत्ताइपरियरिओ ॥ २ ॥ For Private & Personal Use Only सामायिके कामदेवकथा. ॥ ३२२ ॥ inelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704