Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
| दिपरिमाणे जिनपालितज्ञातं
श्रीगुणचंद अच्छिउमचायंतो सारधणं करितुरयसाहणं च समादाय पलाणो रयणीए, मुणियवित्तंतो य अमचो लग्गो तस्स महावीरच०
| अणुमग्गेण, नासंतो य दस जोअणे गंतूण वेढिओ सबतो अमच्चसेन्नेण, तओ सो सीहसेणो बहलतरुवरगहणंमि गिरि८प्रस्तावः
निकुंज निस्साए काऊण ठिओ, इओ य जिणपालिओ पुवावासियसिबिरसंनिवेसं पत्तो समाणो दिसिपरिमाणं चिंति-1 ॥३१५॥ ऊण भणइ-अहो किमहमिहि करेमि?, पन्नासं जोयणाई मे परिमाणं, तं च इत्तियमेत्तेणं चिय पडिपुन्नप्पायं, सेनं
हीच दसहिं जोयणेहिं दुरीभूयमियाणि, ता बलिस्सामि पच्छाहुत्तं, न कोसमेत्तंपि एत्तो पचिस्सामि, सहाइणा बलिय
लोगेण भणियं-अहो! मा मुहा अत्यहाणिं करेहि, तत्थ गयस्स तुह पभूयदविणलाभो जायइ, तेण भणियं-अलाहि तेण दवेणं जं नियमखंडणाए संपजइ,
अह तस्स नियमनिचलचित्तपरिक्खट्टया सुरो एगो। कयउब्भडसिंगारो सवत्तो पुरिसपरिअरिओ ॥१॥ सत्थाहिवरूवधरो सुरलोआओ समोअरेऊणं । पचासन्नो ठाउं पयपिउं एवमाढत्तो ॥२॥ हंहो सावय ! नो कीस एसि तं सप्पिविक्कयनिमित्तं? । जिणपालिएण भणियं वयभंगो हवइ जइ एमि ॥३॥ देवेण जंपियं सुटु वंचिओ तंसि धुत्तलोएण। जो कुग्गहेण हारसि करट्ठियंपि हु महालाभं ॥४॥ अहवा वयस्स भंगे पावं होइत्ति तुज्झ संकप्पो। ता तल्लाभणं चिय पायच्छित्तं चरेज्जासु ॥५॥ जिणपालिएण वुत्तं अहो किमेवं अणग्गलं वयसि ?। वञ्चति धम्मगुरुणो कयाई किं भवसत्तजणं? ॥६॥
RECEMARCELEASEX
॥३१५॥
Jain Educatio
n
al
For Private Personel Use Only
M
ainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704