Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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पणचउग्गुणीभूयलोभाभिभूओ तद्देसोचियभंडनिवहभरियं सगडिसागडं गहिऊण पयट्टो देसंतरं, निसिद्धो य बाद
जणणिजणगेहि, तहावि न ठिओ, एवं च सो अणुदिणं वचंतो गओ तामलित्तिं नयरिं, विणिवट्टियं भंडं, समा-18 साइओ दसगुणो लाभो, वियंभिओ य अचंतलोभसागरो, जाया बहुययरा तदजणवंछा, अन्नदिवसे य दुवारगएण तेण दिट्ठाई दूरदेसागयाई विविहसारवत्थुभरियाई जाणवत्ताई, ताणि य पेच्छिऊण पुच्छिओ तवाणियगो अणेणं-1 भो महायस! कत्तो आगयाइं एयाइंति ?, तेण जंपियं-कलहदीवाओ, वासवदत्तेण कहियं-भद्द ! इहचभंडेण तत्थ | गएण केत्तिओ संपन्जइ लाभो?, तेण भणियं-बीसगुणो, वासवदत्तेण जंपियं-कि सच्चमेयं ?, तेण कहियं-अज ! किमसचभासणे फलं?, एवं च निसामिऊण वासवदत्तेण भाडियाइं जाणवत्ताई भरियाई विविहकंसदोसभंडस्स, पटिओ कलहदीवाभिमुहं, ___ अह परियणेण भणियं-चिरं विमुक्काण जणणिजणगाणं । होही दढमणुतावो सामिय! तुम्हं विओगंमि ॥१॥
ता सारिजउ गेहं सम्माणिजंतु सयणवग्गावि । पुणरवि अत्योवजणकरणे को वारिही तुम्हं? ॥२॥ इय भणिए सो रुट्ठो निद्रवयणेहिं भणिउमाढत्तो। रे तुम्ह को हिगारो एवंविह भाणियबंमि ? ॥३॥ न तुमाहितोचि अहं जुत्ताजुत्तं मुणेमि किं पावा!। लद्धावयासया अहव किं न भिच्चा पयंपति? ॥४॥ एवं खरफरुसगिराहि तजिया तेण तह अदोसावि । लजामिलंतनयणा जह ते मोणं समल्लीणा ॥५॥
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५३ महा०
CHEMOCIROGI
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