Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः
॥ ३१२ ॥
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सो दविणाइनिमित्तं वचतो दूरदेसनयरेसु । पविसंतोऽवि समुद्दे कुणमाणो विविश्वव सायं ॥
॥
विपणि माणधणवद्धगाभिलासो य । अयंत महादुक्खं वासवदतोव पावे ॥ ८ ॥ विसेस ती हिं अह गोयमेण भणियं वासवदत्तो जिनिंद ! को एस ? | जयगुरुणा संलत्तं सीसय ! सम्मं निसामेसु ॥ ९ ॥ कणयखलंमि महानयरे सुबलयचंदो नाम सेट्ठी, तस्स धणा नाम गिहिणी, तेसिं अवलमो सच कलाकलावनिउणो वासवदत्तो नाम पुत्तो, सो य महारंभी महापरिग्गहो गरुयलाभ संभवेऽवि महालोभसंगओ, अहोनिसं दवो - | वज्जणोवाए पयर्द्धतो कालं वोलेइ, तस्स य अम्मापिउणो अच्चंत सावगधम्मकरण सी लागि जिगत्रयणायन्नगेग मुनि - यअचिरइकडुविवागाणि तं नियपुत्तं अणवरयाणेगपावद्वाणपसतं पलोइऊणं भणति वच्छ ! सुमिणोवमं जीवियं असारा विसया सकज्जाणुवत्तणमेत्ता सयणसंजोगा खणविपरिणामधम्मा रिद्विसमुदया, अओ किंनिमित्तं न कुगसि धणधन्नखित्तवत्थुहिरन्नसुवन्नदुपयच उप्पयाइसु इच्छापरिमाणं, न वा परलोयसुहावहं समज्जिसि धम्मं, तहा वच्छ ! पिउपियामह पुरिसपरंपरागयं न माइ दबं, अओ निरत्थओ तदज्जण गाढपरिस्समो, अह अपुत्रं लच्छि उववजिउमिच्छसि तहावि जहासत्तीए इच्छा परिणाममेव कल्लाणकारगमिच्चाइ बहुप्पयारवयणेहिं पन्नविजमाणोऽवि न पडिवज्जइ कम्मभारियत्तणेण एसो मणागंपि तत्रयणं, सच्छंदचारित्ति उवेहिओ अम्मापिऊहिं । अन्नया य देसंत| रागयवणिया पुच्छिया वासवदत्तेण - अहो किं तुम्ह देसे भंडमग्घइ ?, तेहिं कहियं - अनुगंति, तओ तवयणनिसाम
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पश्च मेऽणुव्रते वासवदत्तकथा.
॥ ३१२ ॥
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