Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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श्रीगुणचंद महावीरच ० ८ प्रस्तावः
॥ ३०३ ॥
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पक्खित्तो, ता तदणुरोहो चेव एयस्स अवरज्झइ एवं निसामिऊण नराहिवेण तंबोलाइदाणेण सम्माणिऊण | पेसिओ सगिहं, इयरे पुण दुक्खमारेण मारियत्ति ।
इओ य मुणिसमुचियविहारेण भवियपडिवोहमायरंता अप्पडिबद्धावि जिणाणाए पडिबद्धा दुरणुचरतवचरणपज्जालियकम्मवणावि सङ्घसत्तसुहकारया समोसढा विजयसिंहाभिहाणा सूरिणो, जाया य तियचउकचचरेसु हरि - |सभरनिब्भरस्स जणस्स अवरोप्परमुलावा अहो ! अहो ! अगाहभवोह निवडंतजन्तुगण जाणवत्ता सिवसुहपसाहणासत्ता भयवंतो सुग्गाहियनामधेज्जा सूरिणो इह समोसरिया, तहाविहाणं नामसवणमेत्तंपि पावपच्भारपणासणसमत्थं, किं पुण बंदणनमंसणं ?, अओ गच्छामो देवाणुप्पिया ! तेसिं वंदणत्थं, एवं च सोचा गंतुं पयत्ता सूरिसमीवे नायरया । सो य वसुदत्तो राइणा पेसिओ समाणो गओ निययगेहे, कहिओ जणणिजणगाण पुत्रवइयरो जहा तुम्ह कूडवच्छलेण अहं अज्ज अकयधम्मो चैव विणासिओ होंतो, ता कीस सिणेहवच्छलेण अणत्थपत्थारीए संखिवह जं न सुयह धम्मकरणायत्ति वृत्ते अणुन्नाओ सो जणणिजणगेहिं, गओ सूरिणो पासे, गहिया पञ्चज्जा, तओ एगंतधम्मकम्मुज्जओ जाओत्ति ।
इय इंदभूइ गोयम ! विमुकचो रिक्कपावठाणाणं । मणुयाण उभयलोगेऽवि जीवियं जायए सफलं ॥ १ ॥ इइ तईयमणुवयं | कहियं तइयमणुषयमेत्तो मेहुणनिवित्तिनिप्फण्णं । भण्णइ चउत्थमणुवयमवहियचित्तो निसामेसु ॥ १ ॥
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तृतीयेऽणुव्रते वसुदत्तकथा.
॥ ३०३ ॥
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