Book Title: Mahavir Charitram
Author(s): Gunchandra
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 637
________________ A URORA ***** अणुकूला मह कम्मपरिणई, केवलं एवंविहं रमणिरयणं एवं उज्झमाणेग केणवि नूगमप्पगो असिवपसमणं संभा-15 ६ वियं भविस्सइ, ता न जुत्ता रित्ता चेव मंजूसा पवाहिउंति परिभाविऊग सन्निहियवणदुदुमक्कडं तदभंतरे निक्खिहै विऊण निविडं दुवारं च से बंधिऊण भगवइ जमुणे मा मे कुप्पेजसित्ति भणिऊग पुवनाएण पवाहिया एसा, Pापावियसुरलोयसिरिसमुदयं व अप्पाणं मन्नंतो तं कुवलयदलदीहरच्छि घेत्तूग गओ जहागयं, सावि मंजूसा जलेण बुज्झमाणी गया कोसमेत्तं, दिट्ठा य सुहंकरसीसेहि, तओ नियगुरुणो विनाणाइसयं वन्नमाणेहिं नईमझे पवि-18 है सिऊण आयडिया मंजुसा, उवणीया य गुरुणो, तेगावि असंभावणिजमाणंदसंदोहमुबहतेण संगोविया गेहमज्झे, भणिया य नियसिस्सा-अरे अज अहं देवयापूयं महया वित्थरेण भवणमंतरे ठिओ सवरयाण करिस्सामि, ता तुब्भेहिं बाढं निविजणं कायवं, पडियन्नं तेहिं, अह समागयंमि रयणिसमए मयरद्धयनिय सरसहस्सपहारजजरियसरीरो पवरविलेवणकुसुमतंबोलप्पमुहोवगरणपरियरिओ पिहिऊण सयलगेहदुवाराइं तं मंजूसमुग्घाडित्ता एवं जंपिउं पवत्तो हे हरिणच्छि! किसोअरि! पीणत्थणि ! कमलवयणि वरतरुणि!। पम्मुकभयासंकं संपय मं भयसु दइयं व ॥१॥ बच्चउ विगासमहुणा लोयणकमलं मणोरहेहिं समं । सुयणु ! तुह संगमेणं मयणोऽवि मणागमुवसमउ ॥ २॥ एत्थंतरंमि गाढावरोहसंजायतित्ववरकोवा । तण्हाछुहाकिलंता अच्चंतं चावलोवेया ॥३॥ For Private Personel Use Only

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