Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 10
________________ की जैसे जन्तु को बचाने के लिये उपयोग पूर्वक चलते हैं तो फिर एक पंचेन्द्रिय, मनुष्यजाति की कन्या बाल वैधव्य या तरुण-वैधव्यरूप भीषण अजगर के मुंह में न जाय इसके लिये क्या विवाह क्रिया में होशियारी न रखनी वाहिये ? नवयुवति के नवीन वेग में आनेवाला वैधव्य नारिजाति के लिये दारुण वज्रपात है । जिस क्रिया में इस तरह का भय पूर्ण प्रश्न है, जीने मरने का विचित्र प्रश्न है, वह क्रिया, वह विवाह क्रिया उचित परीक्षा बिना जो की जाती है वह समाज के लिये बहुत घातकरुप है। . आर्य मनुष्यों में दया का रुख स्वाभाविक ही होता है फिर उसमें अपनी संतति के प्रति वात्सल्य भाव का तो पूछना ही क्या है ? तो भी जब समाज का बंधारण व्यवस्थित नहीं होता है तब उनको अपनी प्रिय कन्या बांझारुप हो जाती है और किसी तरह उसको किसी को देकर उस उपाधि के कष्ट में से छूटने की संताप पूर्ण चिन्ता खड़ा होती है फिर उसका परिणाम यह आता है कि अपनी प्रिय कन्या की विवाहक्रिया के लिये परीक्षा न करते जैसे तैसे के साथ उसका विवाह कर दिया जाता है। अक्सर मा बाप पैसेवालों के यहां कन्या देने की धुन में रहते हैं कि वे अपनी प्यारी कन्या के हित का विचार करने को एक दम भूल जाते हैं अथवा पैसा प्राप्त करने के लोम में वे अपनी प्रिय कन्या का हित देखने में जानते हुए आँख के आगे कान खड़ा करते हैं और इससे भी आगे बढ़ने वाले मनुष्य कौन से कम हैं कि जो चौड़े बाजार में कन्याओं की दुकान खोल कर बैठे हैं। - इस तरह के अज्ञान और लोभ के बादल जहाँ घिरे हुये हैं वहाँ विवाह प्रवृति योग्य तौर पर कैसे हो? इस का परिणाम अधिक संख्या में विधवा न हो तो दूसरा क्या हो सकता है ? - प्रथम तो छोटी उम्र में विवाह करना गैरवाजबी है । चौदह वर्ष की उम्र से पहिले कन्या का विवाह न होना चाहिये । इतनी उम्र तक उसको सुशिक्षा और सदाचरण में प्रवीण करना चाहिये और इस समय के बाद वह विवाह ग्रन्थी की अधिकारिणी बनती है। उपरोक्त उम्र के बाद योग्य पात्र मिलने पर उसका सौभाग्य खिल उठेगा। कदापि वह योग (योग्य पात्र ) समय पर न मिले तो उसको अयोग्य के साथ नहीं जोड़ना चाहिये । कारण कि उसने अपने शिवा

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