Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 44
________________ ( ४२ ) उसी माफिक क्रोध द्वारा होनेवाली हानि चर्म चक्षु द्वारा देखी जासके तो कोई मो क्रोध करने की हिम्मत न करे। क्रोध से उत्पन्न होने वाला विष रक्त के साथ फिर कर समग्र शरीर के प्राण केन्द्रों को हानि पहुंचाता है। मगज और ज्ञान तंतुओं के बारीक परमाणुओं को और समस्त अन्तरस्थ अवयव विष से दुषित रक्त की वजह से निर्बल हो जाते हैं। ___ अक्सर मनुष्यों की प्रारोग्यता अच्छी नहीं होती है उसका खास कारण यह है कि दुषित लोहू की वजह से परमाणु निरन्तर बुभुक्षित और संकुचित रहते है। शरीर में जब निरन्तर यह मानसिक विष प्रचारक क्रिया जारी रहती है तब किसी मनुष्य का जीवन प्रफुल्लित खिला हुआ और बलवान नहीं होता है तथा उसमें उत्तमोत्तम कार्य शक्ति नहीं होती है। - निरंकुश क्रोध, ईर्षा अथवा किसी भी तरह के उत्तम आवेश से बारीक ज्ञान तन्तु मंडल की जो हानि होती है इससे विशेष हानि दूसरी किसी भी वस्तु से नहीं होती है। शान्ति, सरलता और स्वस्थता पूर्वक गति करना ही मगज और ज्ञान तन्तुओं का उद्देश है और वे जब इस माफिक गति करते हैं तब पुष्कन प्रज्छा काम कर सकते हैं और सुख उत्पन्न कर सकते हैं परन्तु वारीक स्थूल यंत्र के माफिक जब उनको विशेष गति दी जाती है अर्थात उसमें यथावत तेल नहीं डाला जाता है अथवा उनकी गति को नियमित करने वाले बड़े चक्र बिना जब उसको चलाया जाता है तब वे बहुत ही अल्प समय में छिन्न भिन्न हो जाते हैं। ___ जो मनुष्य छिद्रान्वेषण करता है और खिन्न तथा गुस्से हुआ करता है तथा जो मनुष्य अपने मिजान को काबू में नहीं रख सकता है वह मनुष्य अपने ऐसे स्वभाव से स्वयम् अपने आपको बहुत हानि पहुंचाता है तथा अपनी आरोग्यता का नाश करता है और साथ ही साथ अपने जीवन को बहुत ही कमती उम्र में लाकर रख देता है और इस बात की उसको खबर भी नहीं होती है। . जो मनुष्य अपने आपको अंकुश में नहीं रख सकता है उसको कबूल करना पड़ता है कि वह सिर्फ थोड़े समय के लिये ही मनुष्य रहता है और शेष समय में वह पशु हो जाता है यह भी उसको स्वीकार करना पड़ता है कि उसकी पशुवृत्ति अक्सर निरंकुश बन जाती है और उसके मानसिक साम्राज्य में तोफान खड़ा

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