Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ७१ )
समय ोलखांण
समय परिवर्तन-शील है इस बात ने जो बराबर ओलखि होती तो, आज आपणी समाजरी घोर दुर्दशा हुई है वा नहीं होती ।
जमानारे प्रतिकूल चालण सुंहीज, आज विचित्र दशा अनुभव रया हाँ, ओर आर्थिक व शारिरिक शक्ति से नाश कर रया हाँ ।
कन्या - विक्रय
अनेक कुरिवाज में कन्या विक्रयरो नम्बर पेलो है। इस राक्षसी प्रथासुं आन घर घर में आग प्रदिप्त हो गई है । समाजरी हर एक व्यक्ति इसे हताश होकर कृष-काय हो गई है ।
स्फुर्ति और क्रांति इस जालिम रिवाज हवा हो गई है ।
संख्या में घाटो
इरी बदौलत आज बहुतसा कुटुम्बरा नाम निशान नहीं है, कई इथा पृथ्विरी पट पर सुं मिटिया मेट होवरी तैयारी में है ।
निरंकुश कन्या- मूल्य देवण में अशक्त होवणसुं श्राज सैकड़ों नव युवक अविवाहित मौजूद हैं।
संख्या घटबारो श्रो मुख्य कारण है, अगर माहिज हालन चालू रखेला तो इस बातरी दृढ शंका है के, भविष्य में आंपणी ज्ञातिरों दुनिया में नाम रेणो मुश्किल है।
हाल का है
सदभाग्य री बात है के, हाल तक सामाजिक सत्तारो काबु ठीक है इच्छा नहीं हुवे तो भी अनेक अयोग्य रिवाज निभावण वास्ते द्रव्य और शक्तिरो भोग देखा है।
मगर दुर्दशारी भी हद होणी चाहिजे, अब भी समाज नहीं चेतेला तो, वो समय बहुत नजदीक है के रही सही सत्ता भी निर्मूल हो जावेला और पारावार भापति बढ जावेला ।