Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( ५२ ) जाति को पवित्र, प्रभावशाली और संघठित बनाने जैसा समाज के हित का एवं उसकी उन्नति करने का उत्तम कार्य है। पंचायत का दुरुपयोग करना अर्थात् उसमें पक्षपात को या रागद्वेष को स्थान देना या उसके पवित्र नाम को कलङ्कित करने के समान है । आज कल हमारा समाज इस पवित्र प्रथा या संस्था का सदुपयोग कर रहा है या दुरुपयोग इस विषय में मैं आज कुछ लिखना नहीं चाहता। इस विषय पर दूसरे किसी लेख में ऊहापोह करूंगा । उस समय मैं हमारे समाज की वर्तमान पंचायतप्रथा का खाका खींच कर पाठकवृन्द के सामने रखूंगा । आज कल हमारे समाज में किस प्रकार पंचायत हो रही है और उससे समाज का कल्याण हो रहा है या अकल्याण, यह बात मैं तब स्पष्टरूप से लिपिबद्ध करूंगा ।
आजकल हिन्दू समाज के भिन्न २ अंगो के प्रति दृष्टिपात करने पर मालूम होता है कि क्या ब्राह्मण, क्या क्षत्रिय, क्या वैश्य, क्या जैन, सर्वत्र श्रव्यवस्था नजर आती है । समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको पंच या न्यायाधीश मानता और मनाता है । यह बात ठीक नहीं है। जहां सभी न्यायाधीश हॉ वहां पंचायत का शासन किस पर किया जाय ? जिस समाज में घर २ पंच हों, उस समाज में अधेर और अव्यवस्था नहीं हो तो और क्या हो सकता है भला ? इस रीति से न भूत काल में किसी समाज को लाभ हुआ न भविष्य में होने की आशा की जा सकती है। भारत के प्राचीन इतिहास को देखने से मालूम होता है, कि बहुत पुराने जमाने में और थोड़े - ( १०० - २००) सौ दोसौ - बरसों पहले घर २ पंच नहीं थे । न आज कल के जैसा हमारे समाज में अन्धेर का साम्राज्य ही फैला हुआ था । यह अव्यवस्था या गड़बड़ कुछ अर्से से हुई है और जो समाज की उन्नति के मार्ग में बड़ी भारी रुकावट समान खटक रही है । यदि यह अव्यवस्था शीघ्र ही दूर नहीं होगी, तो इससे समाज का कितना अकल्याण होगा इसकी कल्पना नहीं की जा सकती है ।
घर २ पंच होने से पंचायत सभा में समाज के हित के लिये जो २ प्रस्ताव किये जाते हैं, उनका अमल नहीं होता है । समाज का प्रत्येक व्यक्ति, नकेल टूटे हुए ऊँट की तरह, अपनी २ मरजी माफिक बर्ताव करने लग जाता है और पंचायत के प्रस्ताव केवल कागजों पर ही रह जाते हैं। इससे समाज की उन्नति रुक जाती है ।