Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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गणित बहकला शिल्पवित् अर्थात् गणित शास्त्र, शिल्प शास्त्र और दूसरी नाना प्रकार की कलाओं का जानने वाला। कलाओं के जानने से आदमी चतुर होता है । वह, कल्पना शक्ति के प्रताप से, अपने सामने उपस्थित हुई बात की सत्या-सत्यता का निर्णय कर सकता है । गणित को जानने वाला शख्स व्यवहारिक या पक्का (Practical) होता है। पंच होने वाले व्यक्ति में इन बातों का ज्ञान होना आवश्यक है।
सूत्रधारः अर्थात् संभालने वाला या संचालन करने वाला। समाजरूपी नौका को कुशलता से खेनेवाले नाविक रूपी पंच का नाम ही सूत्रधार है। रंगमंच पर खेलेजानेवाले नाटक के पात्रों में से किस को कौन मी भूमिका ( Part ) सोपना यह जैसे नाटक के सूत्रधार के हाथ में होता है, उसी प्रकार समाज में किस व्यक्ति से क्या काम लेना और समाज को इष्ट या उन्नति के मार्ग में लगाना पहपंच रूपी सूत्रधार के हाथ में होता है। इस प्रकार पंचों के आवश्यक सद्गुणों का विवेचन कर अब मैं प्राचीन पंचायत-पद्धति का संक्षेप में वर्णन करना चाहता हूँ।
पंच कैसे चुने जाते थे ? . प्राचीनकाल में समाज या जाति में से योग्य व्यक्तियों को चुन लिया जाता था। देवमन्दिर में सब लोग एकत्र होकर आदर्श चरित्रवाले और ऊपर लिखे गुणों वाले व्यक्तियों के नाम की चिहियें एक घड़े में डालते थे। पूजा समाप्त होने के बाद एक २ चिट्ठी उसमें से निकाल कर पुजारी के हाथ में दी जाती थी। पुजारी उसमें लिखे हुए नाम को उच्च स्वर से सबको पढ़ सुनाता था। जिस नाम के सम्बन्ध में किसी का विरोध नहीं होता था यानी जिसको बहुमती(Majority) की अनुमति मिलती थी, उसी व्याक्ति को चुन लिया जाता था। इसमें किसी प्रकार का पक्षपात नहीं होता था। जो लोग यह कहते हैं कि प्राचीन भारत में आजकल के जैसी चुनाव की प्रथा (Election System) नहीं थी, वे विश्वगुरु भारत की प्राचीन पंचायत संस्था के उज्ज्वल इतिहास से सर्वथा मनमिज्ञ अर्थात् अनजान है। भारतीय समाज के स्वराज्य का वास्तविक खयाल करानेवाली इस प्राचीन पंचायत-प्रथा या संस्था का इतिहास बहुत ही देखने योग्य है। क्या ही अच्छा हो यदि इस आदर्श प्रथा का पुनरुद्धार किया जाय ?