Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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॥ॐ॥ मेरी सम्मेतशिखर यात्रा और अनुभवी अपील प्रिय महानुभावो ! यह तो अपूर्व आनन्द की बात है कि जिस महान् पवित्र सम्मेतशिखर गिरिराज पर श्री अजितादि अनन्त उपकारी अनेक अर्हन्तों ने
आत्मानन्द की अनुपम दशा प्राप्त की है, जिसके आस-पास का क्षेत्र महान् त्रिलोक्यभानु श्रमण भगवन् श्री महावीर देव जैसे ( World Teacher ) विश्व गुरु का जन्म दाता होने से संसार की सर्व पुण्यभूमियों में प्रमुख स्थान धारण कर ऐतिहासिक शोभा में अभिवृद्धि कर रहा है, जिस अनुपम क्षेत्र पर निर्मल जल धारा के रूप में मन्द मन्द गति से बहने वाली रिजुवालिका नहीं अपने किनारे पर उक्त त्रिलोक्य भानु के पूर्ण ज्ञान ज्योति के प्रकाश का स्थान समझ अपने को गंगा से विशेष पवित्र मानने का गौरव रखती है, जहाँ पर मनोहर मधुवन, वायु के वेग से खल खल करते हुए हरे हरियाले पत्तों से सुशोभित सुन्दर वृक्षों के नीचे, महाप्रभु महावीर देव को अपूर्व आत्म-ध्यान किया हुआ समझ इन्द्रलोक के नन्दनवन को नीचा दिखा रहा है। जहाँ के विशुद्ध वातावरण का शीतल वायु पापीजनों के तृष्णा रूपी ताप को शान्त करने में बावना चन्दन का कार्य कर रहा है, अर्थात् हर तरह से इस रमणीय भूमि की सौन्दर्यता भव्यात्माओं के हृदय को उल्लासित कर रही है, ऐसी देवभूमि के दर्शनार्थ जाने के लिये कुछ दिन पूर्व यात्रियों के मन में मार्ग की कठिनाइयों का संकल्प विकल्प होता था, वहाँ के जलवायु का हानिकारक असर होने का हर एक हृदय में भूत जैसा भ्रम था, परन्तु जब से पुण्यात्माओं ने संघ यात्रा निकालना शुरू किया तब से सालाना हजारों यात्रिगण इस देव भूमि के दर्शन का लाभ उठाने लगे और सारा भ्रम दूर हो गया। रास्ता अब ऐसा सुलभ और सरल समझा जाता है कि जहाँ पर जाने के लिये अच्छे २ अक्लमन्द आदमी भय खाते थे अब तो अनपढ़ स्त्रियां
भी निर्भयता से जाने लगी हैं और केवल इस वर्ष में गुजरात मारवाद से लेग, भग दस बारह स्पेशल ट्रेनें गई हैं और अभी जो दो स्पेशल ट्रेनें कालिन्द्री निवासी . सेठजी श्री धूलचन्दजी साहिब की एरिनपुरा रोड़ से गई थी, उस प्रसंग पर मुझे : . भी इस महातीर्थ के दर्शनार्थ जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और यात्रा मार्ग में
जो कुछ मुझे अनुभव हुमा, उसको सेवा बुद्धि से प्रदर्शित करना उचित समझ