Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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(४४) उसी माफिक कार्य करो। अथवा अधूरे गुण धारण मत करो परन्तु सम्पूर्ण और उत्तम शक्ति के गुण धारण करो। किसी भी वस्तु के लिये समग्र बल से प्रयत्न करना ही उसको प्राप्त करने का मार्ग है और उसको प्राप्त करने के लिये हम जितने बल और आग्रह से प्रयत्न करते हैं उतने ही प्रमाण में वह हमें प्राप्त हो सकती है। ___ यादे तुमें गुस्सा और क्रोध करने की आदत हो, यदि तुम्हें जरा मी हरकत होते ही मिजाज खोदेने की आदत हो तो इस दुर्बलता के विषय में शोक करने में और हरएक के आगे अधिक लाचारी दर्शाने में अपने समय का अपव्यय मत करो परन्तु आर्दश पुरुष के सदृश शान्त, विचारशील, स्वस्थ और गम्भीरता का वर्ताव करना सीखो। अपने आपको समझाओ तुम गर्म मिजाज मत करो, काध मत करो परन्तु स्वस्थ रहो। छोटी २ हरकतों से मिजाज को मत खोओ। गम्भीर शान्त और स्वस्थ विचार निरन्तर स्मर्ण करने से तथा उनको ठीक वैसे ही बनाने से बहुत सहायता मिलती है उनको देख कर तुम आश्चर्य चकित हो जानोगे। सारांश यह है कि कुछ भी क्यों न हो जाय वस्तुस्थिति कैसी हो हरकत युक्त अथवा क्रोधजनक हो अथवा तुम्हारे आस पास के मनुष्य बहुत ही आवेश में क्यों न आये हों अथवा स्वस्थ हो तो भी तुम अपनी शान्ति को मत खोओ। हमारे विचार के प्रकार और बल द्वारा ही हमको अपना भूत और वर्तमान स्थिति प्राप्त हुई है तो उसी तरह भावि स्थिति भी प्राप्त हो जायगी।
अकसर स्वभाव जठर अथवा मगज की निर्बलता स्वार्थ अथवा नीच आंता का परिणाम होता है और मनुष्य की संज्ञा के पात्र कोई भी मनुष्य उसके वश में नहीं रहेगा।
क्रोध जो कि हमारे उत्तमोत्तम मित्रों को एक क्षण में हमारा शत्रु बना देता है उसको निरंकुश छोड़ देने में जरा भी पुरुषत्व अथवा श्रेष्टता नहीं है।
हमारे क्रोध युक्त मगज में जब उष्णरक्त उछला करता है तब हमारी भावना और शब्दों का अंकुश में रखना बहुत कठिन हो जाता है उसको हम सब जानते हैं परन्तु क्रोध के दास बनना यह कितना भयङ्कर काम है उसको भी हम लोग जरूर जानते हैं तो भी क्रोध के दास बनने से हमारा स्वभाव बिगड़ जाता है