Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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एक प्रकार का नया जन्म प्राप्त हुआ। सम्मेलन के प्रथम अधिवेशन के कार्य को समाप्त हुये आज छ: महीने व्यतीत होने आये हैं इस दरमियान में इस कुप्रथा पर कोई अंकुश सवार नहीं हुआ और यदि इसी तरह सम्मेलन के प्रस्ताव को ठुकरात जायेंगे तो हमें खेद है कि हमारी समाज कुछ ही काल के लिये जीवित रह सकेगी।
इस संकट मय के समय में हमारी समाज यह विचार नहीं सकती कि इस समय हमें किन २ चीजों की आवश्यक्ता है ? पुरानी रूढ़ियों के गुलाम बन कर अपने जीवन को आनन्दमय बिताते हुये नजर आते हैं। रूढ़ियों के गुलामों को ज्ञान नहीं होता कि हमारी दशा दिन दिन किम अवस्था पर पहुंच रही है और अन्त में इसका क्या परिणाम होगा। जमाने की रूह को नहीं समझने वाले रूढ़ियों के गुलामों ! जरा आँख खोलकर देखो। आज तुम्हारी क्या अवस्था हैं और तुम्हारी होनहार सन्तान किस अवस्था पर पहुंचेगी। आज कल जमाने में हरएक समाज अपनी अपनी उन्नति के साधनों की खोज कर रहा है और पुरानी रूढ़ियों को ठुकराते हुये अपनी समाज में नये रीति रिवाज का जोरों के साथ समावेश कर रहे हैं। क्या दूसरी समाजों के उन्नतिशील कार्यों को देखने पर भी हमारी समाज इसी कुम्भकर्ण की निद्रादेवी के शरणागत हो पड़ी रहेगी ।
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समाज में होने वाली कुप्रथायें बहुत हैं और उन सबका उल्लेख इस छोटे से लेख में करना वृथा है कारण एक रोटी एक ही कुत्ते को न खिलाते आऊ दस कुत्तों में विभाजित की जाय तो सारांश यही होगा कि एक भी अपना पेट न भर सकेगा । इन सब कुप्रथाओं का ज्ञान हमारी समाज को सम्मेलन के अवसर पर अच्छी तरह हो गया है और सम्मेलन ने यह भी बतला दिया है कि अब समाज को किस रास्ते पर चलना चाहिये परन्तु इसके उपरान्त भी हमारी समाज आँखों पर पट्टी बांध कर इन्हीं पुरानी रूढ़ियों में गोते मार रही है । अत्यन्त खेद का समय है कि हमारी समाज को डूबती हुई नैया में से सावधान होने को उपदेशक अपने गले घोट रहे हैं लेखक ग्रन्थों के ग्रन्थ लिख रहे हैं फिर भी समाज उन उपदेशों व लेखों की परवाह न करके अपना कक्का ही खरा किये जा श्री