Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 40
________________ - जब तुम गुम्से में हो तब सामने गले मनुष्य को "दो बाते सुनाने" की काम बहुत महंगा हो जाता है । ___ मेरे परिचय का एक बहुत समर्थ व्यापारी जब वह गुस्से में होता है तब लोगों को साफ कहने की अपनी टेव से उसने अपनी कीर्ति और अपने व्यापार को बिगाड़ दिया। जब वह गुस्से में होता है, तब चाहे जैसी नीच अथवा हलकी बात कहते हुए नहीं रुकता है वह मनुष्य को इच्छानुसार विशेषण लगाता है, वह भान को भूलकर बकता है, वह अपने नौकर को अपने यहाँ से निकाल देता है उत्साहित अथवा शनिवाले मनुष्य को रखना उसके लिये प्रायः अशक्य हो जाता है। __मैंने देखा है कि क्रोध अथवा गुस्से के पंजे में फंसे हुए लोग, मनुष्य की बनिस्बत राक्षस के माफिक अधिक बरतन रखते हैं। एक ऐसा मनुष्य मेरे स्मरण में है कि जब वह अपने भयङ्कर गुस्से के वश हो जाता था तब जो जो वस्तु उसके हाथ में भाती भी थी, वह उन वस्तुओं को तोड़ देता था और जो मनुष्य उसके बीच में आता था अथवा उसको रोकने का प्रयत्न करता था उसको वह खराब गालिये देता था। जब वह गुस्से में होता तब मैंने उसको लकड़ी के प्रहार से पशुओं को मारते देखा है, उस समय उसकी आँखें पागल मनुष्य की आँखों के माफिक फट जाती थी और उसका परिचय जानने वाले मनुष्य अपना जीवन बचाने के लिये भाग जाते थे वह उस समय के लिये पागल हो जाता था और वह जब क्रोधरूपी राक्षस के पंजे में होता तब वह क्या करता है, उसका उसे जरा भी विचार नहीं रहता था। जब उसका क्रोध उतर जाता था, तब वह मजबूत मनुष्य होने पर भी दीर्घकाल तक सम्पूर्ण थका हुआ रहता था। __निरंकुश क्रोध के वश मनुष्य वस्तुतः उतने समय पर्यन्त पागल होता है जबतक वह उसके अन्दर रहे हुए राक्षस के ताबे में होता है। जो मनुष्य अपने कामों को सम्पूर्ण अंकुश में नहीं रख सकता उसके लिये यह नहीं कहा जा सकता कि वह पागल नहीं है, जब वह निरंकुश स्थिति में होता है, तब ऐसे काम करता है कि जिसके लिये वह अपने समग्र जीवन में अधिक शोक करता है। गरम मिजाज और असंयम की वजह से अक्सर मनुष्यों के जीवन दोषमय, प्रशान्त और अवनीय संताप तथा दुःखों से परिपूर्ण हो गये हैं।

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