Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ (३) गड़ियों में स्थान देकर एक प्रकार का समाज पर चाहे वह गरीब हो अथवा धनाढ्य हो बोझा डाल दिया है। उदाहरण के तौर पर लीजिये चन्द्रावती नगरी में ५०० करोड़ पतियों ने अपनी अपनी तरफ का एक दिन नियत कर लिया था जिस रोज सारे गांव को जिमाते थे। इसमें आप क्या तात्पर्य निकालते हैं क्या उनोंने एक रुदि समझ कर किया था नहीं सिर्फ गरीबों का पालन पोषण का तरीका निकाल रखा था और उसी में चन्द्रावती नगरी की गरीब प्रजा सुखी थी। आज हमारे समाज के रूढ़ियों के गुलामों ने यह बोझा हर एक पर लाद दिया है जो समाज को गहरे गड्ढे में उतारने वाला है। गरीब लोग इस रूढ़ि के शिकार बन कर हमेशा के लिये अपने आपको डुवा देते हैं और यह डुवाने वाले समाज के अग्रेसर जीमण प्रेमी ही हैं अगर इस प्रथा को रूढ़ि रूप में से निकाल दिया जाय तो डूबने वाली गरीब प्रजा बच सकती है। परन्तु यह पचाने का कार्य तो वे शुरू में सीखे ही नहीं हैं। वे यह समझते हैं कि अगर बचाने जाते हैं तो हुकूमत व बड़प्पन जाता रहता है । माज कल समाज को जीमण क्या जिमाना है एक तरह की जिमाने वाले के गले आफत की माला प्रा पड़ती है। जिमाने वाला कभी खुश नहीं आता है सिर्फ या तो वह देखा देखी अपनी बढ़ाई अथवा एक दूसरे से बड़ा नाम प्राप्त करने की कोशिश में रह कर अथवा समाज का भार रूप बोझा समझ कर जिमाता है । जिमानेवाले को सबसे पहिले पंचों की इजाजत प्राप्त करनी पड़ती है जिसमें अंग्रेसरों की कदर होती है। वह पंचों से इस कदर हैरान किया जाता है कि उसका खुद का जीमन पंचों की इजाजत प्राप्त करने में ही समाप्त हो जाता है। पचा बचाया जीमन की तैयारियों में लगा देता है। उस उपरान्त भी कुछ बाकी रह गया तो जीमने के बाद उसके किये हुये जीमन की निंदा में पूरा हो जाता है। अगले वक्त में जीमने पर भीमानेवाले को आशीस दिया करते थे उसका परिवर्तन आज निन्दा में हो गया है। निन्दा भी क्या लड्डू अच्छे नहीं बने साग वगैरह में घी की कमी रखी, चावल पूड़ी कच्चे रक्खे इत्यादि कई तरह से निन्दा के कारण पैदा कर जिमानेवाले के किये हुये कार्य पर धूल डाल दी जाती है। सारांश जिमानेवाला आजकल रूदि रूपी गाड़ी को चलाता क्या पिका मारता है। यह धके से चलने वाली गाड़ी हमारे समाज प्रेमियों को

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92