Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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निन्दनीय है फिर भी रूदियों के गुलामों ने बगबर अपने पद पर कायम रह कर समाजप्रेमी अथवा गरीब कोई भी हो सबको बाध्य कर इस बन्धन की रस्सी में जकड़ रखे हैं।
इस कुप्रथा से समाज का लाखों रुपया व्यय किया जाता है जिसका कोई सदुपयोग नहीं होता। आज खाया कल वैसे के वैसे ही रह जाते हैं। जीमने वाले का यश कायम नहीं रहता कि जिसके जरिये उसके होने वाली सन्तान अपने आपको प्रतिष्ठित मान सके । इस समाज के भार रूपी बोझा को अलग कर यदि इसका सुप्रबन्ध किया जाय तो समाज अपना नाम आज तवारीख के पृष्ठों में सुनहरी हरफों में प्राप्त कर सकता है। समाज में किन २ बातों की न्यूननता है जिसके जरिये हमारी होनेवाली सन्तान अपना गौरव प्राप्त कर सके उसका अवलोकन किया जाय तो आज सिवाय विद्या के और कुछ नजर नहीं भाता है। यह विद्या हमारी समाज में कहीं पर भी नजर नहीं आती है। इसकी अभावता से आज हमारा समाज दसरे समाजों से हर हालत में गिरा हुआ है। दुनिया के कोने कोने में कार्य कौशलता के चिन्ह नजर आते हैं और इसका कारण एक विद्या मात्र ही है। हमारी समाज सिवाय गुलामगिरी से अथवा ब्याज से धन प्राप्त करने के और कोई योग्यता नहीं रखती और इसी अयोग्यता के अभाव से समाज जहाँ तहाँ ठुकराती हुई नजर आती है। इसको बचानेवाला मात्र एक विद्या ही है। इसलिये समाज हितैषी इन व्यर्थ व दुखप्रिय होने वाले जीमनों को नष्ट करे और इसमें होने वाले खर्चे का सदुपयोग विद्या दान में किया करे। जीमनों से होने वाले लाखों रुपयों का व्यय बन्द कर होनहार सन्तान को विद्या दान दिया जाय। और समाज में गरीबों का पालन पोषण किया जाय तो अधिक अच्छा व लाभ का कार्य समाज के लिये हो जायगा। ... इन्हीं जीमन से होनेवाली हानियों का अवलोकन भी कर लेना जरूरी है। हमारे जीमन प्रेमी तो इस तरफ अपना ध्यान कभी नहीं खींचते हैं और यही समझते रहते हैं कि इसमें धर्म है परन्तु आज कल इसी धर्म के नाम से .महा अधर्म होता है वे न तो रात देखते हैं न दिन न मौसम की तरफ कौनसा मौसम किस योग्य है यह उन्हें ख्याल करने की जरूरत नहीं रहती चाहे चौमासा क्यों न हो लाखों जीवों का संहार इसी जीमन बनाने में क्यों न होता हो । गर्मी की