Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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जगत् की गिरी हुई छोटी ? जातियों ने भी इस बीसवीं सदी के वेग से दौड़ कर अपनी २ उन्नति करने में जोर से पैर उठाए हैं और उसके परिणाम से वे जातियाँ अज्ञान के गहरे अंधेरे में से ज्ञान के प्रकाश में आ गई हैं और दूसरे समाजों के साथ २ अपने समाज का गौरव बढ़ाया है, उन्होंने हर तरह से सुख के मार्ग में प्रवेश किया है, जैसे सिक्ख, पारसी क्रिश्चियन इत्यादि ।
पकी पोरवाल जाति तो पहिले से ही उच्च प्रसिद्ध और विशाल थी इस जाति का भूतकाल इतना ऊँचा और आदर्श है कि जिसको जानकर कोई भी मनुष्य मुग्ध हुए बिना नहीं रहता है । इसी जाति ने कुबेर के समान संपत्तिशाली वीर वीर शिरोमणि विमलशाह सेठ को जन्म दिया, जिनकी कीर्ति चाबू के जगत् विख्यात मंदिर आज भी गारहे हैं। राणकपुर के विराट् विचित्र मंदिर के निर्माता धनाशाह सेठ ने भी इसी पौरवाल जाति को ही गौरवान्वित बनाई है । कुमुदचन्द्र जैसे महान वादी को गुजरात के सम्राट् सिद्धराज जयसिंह की राज सभा में वाद से परास्त करने वाले और स्याद्वादरत्नाकर जैसे ८४००० श्लोक का महान् उपयोगी न्याय के ग्रन्थ को बनाने वाले श्रीवादिदेवसूरि जैसे प्रखर आचार्य ने भी इसी पौरवाल जाति को पुनित और यशस्वी बनाया है । कवि सम्राट् श्रीपाल कवि ने भी इसी उत्तम पौरवाल जाति से जन्म पाकर गुर्जर सम्राट् सिद्धराज जयसिंह का महान् प्रेम और गौरव प्राप्त किया है। भाईयों मैं कहां तक कहूं ? आपकी पारेवाल जाति पहिले धीर, वीर, गंभीर, बुद्धिमान्, श्रीमान् और कार्तिवान् श्री वीर शिरोमणि श्री वस्तुपाल तेजपाल की वीरता विद्वत्ता लक्ष्मवित्ता तो आप से या किसी सभ्य मनुष्य से छिपी हुई नहीं है ।
महानुभावों ! अब आपकी वर्तमान पौरवाल जाति का निरीक्षण कसे कि -पहिले की अपेक्षा अब यह कितनी गिरी हुई है ? वर्तमान काल की वैश्य जाति भी यह कितनी पिछड़ी हुई है अज्ञान प्रमादी और बहमी होगई हैं ? इस वक्त पकी वह वीरता, विद्वता, धीरता और धर्म को उन्नत करने की शक्ति कहाँ चली गई है? भाइयों ! आप को मैं जरा कड़क लिख रहा हूं परन्तु सत्य लिखता आप ही अपनी छाती पर हाथ रख कर आत्मा को पूछिए कि आप के पास पुरुषों के समान गुण और कला आदि की सम्पत्ति रही है या क्या ?