Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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( २३ )
राजसभा में दोनों तरफ के सभासद एकत्रित हुए । राजा ने कुमुदचन्द्र को वाद विवाद प्रारम्भ करने के लिये कहा । कुमुदचन्द्र ने वाद आरम्भ करने के पूर्व राजा को निम्न आशीर्वाद दिया ।
खद्योत समातनोति सविता जीर्णोर्णनाभालय
च्छायामाश्रयते शशी मशकतामायान्ति यत्राद्रयः । इत्थं वर्णयतो नभस्तव यशो जातं स्मृतेर्गोचरं,
तस्मिन भ्रमरायते नरपतेः वाचस्ततो मुद्रिताः ॥
उपर्युक्त स्तुति करने के पश्चात् कुमुदचन्द्र अपना पक्ष सिद्ध करने लगा नग्न रहने में मुक्ति है, स्त्री मोक्ष नहीं जाती और कंवली भोजन नहीं करते है; यह कुमुदचन्द्र का पक्ष था ।
उपर्युक्त बातों का उत्तर देने के पूर्व देवसूरि ने राजा को निम्न आशीर्वाद दिया । नारीणां विदधाति निर्वृतिपदं श्वेताम्बर प्रोन्मिषत्
कतिस्फाति मनोहरं नयपथप्रस्तार भंगी गृहम् । यस्मिन्केवलिनी न निर्जितपरोत्सेकाः सदा दन्तिनो,
राज्यं तज्जितशासनं चभवत चौलुक्य ! जीयाश्चिरम् ॥ उपर्युक्त स्तुति के पश्चात् देवसूरि ने बड़ी खूबी के साथ कुमुदचन्द्र के सिद्धान्तों का युक्ति प्रयुक्ति से खंडन किया, और यह सिद्ध कर दिया कि स्त्री मोक्ष जा सकती है । केवली आहार ले सकते हैं। नग्नत्व के अतिरिक्त भी मोक्ष जा सकते हैं । इन्होंने ये युक्तियें अपने न्यायशास्त्र के सिखाने वाले वादिवेताल श्री शान्तिसूरि की रची हुई उत्तराध्ययन सूत्र की टीका में से ली थी। उनके
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रावा बोलने तथा सचोट दलीलों से समस्त सभा देवसूरि पर मुग्ध हुई । सूरिजी का यह भाषण सुन कुमुदचन्द्र निरुत्तर हो गये । उनका मुंह निस्तेज हो गया और जिस प्रकार डूबता हुआ मनुष्य तिनके का सहारा लेता है, उसी प्रकार अन्य कुछ न सूझने पर उसने देवसूरि के वाक्यों में व्याकरण की एक भूल निकाली । किन्तु वह भूल ही न थी। उस सम्बन्धी मत लेते हुए उत्साह वसूरि का शब्द व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध है । यह सुनकर कुमुदचन्द्र बिल्कुल ठण्डा पड़ गया । सभापति ने अन्य सदस्यों का मत लेकर निर्णय प्रकाशित किया कि देवसूरि की जीत हुई और कुमुदचन्द्र की