Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan

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Page 24
________________ ( २५ ) रिजी ने राजा को धर्मोपदेश देकर जैन धर्म का रागी बनाया। उन्होंने कुछ समय उस नगर में स्थिरता की। इसी अर्से में सिद्धराज जयसिंह ने नागोर शहर के ऊपर जबरदस्त सेना के साथ चढ़ाई की। जब उसे यह ज्ञात हुआ कि देवसरि यहां विराजते हैं, तब वह बिना कुछ किये पीछे लौटा। इससे सिद्ध होता है कि सिद्धराज के ऊपर देवसूरि का कितना प्रभाव होगा ? ____ यहां से विहार कर सूरिजी कर्णावती नगरी में आये और चतुर्मास भी यहाँ रहे। यहां श्री नेमिनाथजी के मन्दिर में धर्मोपदेश देने लगे। इनका उपदेश इतना सचोट और प्रभावशाली था कि उसको सुनने के वास्ते प्रत्येक जाति तथा धर्म वाले आते थे। जिन जिनने उनका उपदेश सुना वे समस्त जैनधर्मी हो गये। ___ एक समय कर्णाटक के राजा जयकेशी के माननीय पंडित कुमुदचन्द्रजी गुजरात में आये । वे दक्षिण के महान् पंडित माने जाते थे और दिगम्बरों के प्राचार्य थे। उन्होंने अपने बाद में चौरासी वादियों को हराया था। यहां ये वादिदेवसूरि की कीर्ति सुनकर उनको हराने के वास्ते आए थे। कुमुदचन्द्र ने सिद्धराज जयसिंह से वादिदेवसरि के साथ शास्त्रार्थ करने को कहा इस पर से सिद्धराज ने दोनों के वादविवाद का दिन नियत किया। उसके वास्ते यथायोग्य नियम लिखे गये । पाटन शहर में घर २ जोरों से वाद की चर्चा चलने लगी। . वाद करे वह वादी कहा जाता है और उत्तर दे वह प्रतिवादी कहा जाता है। यहां कुमुदचन्द्र वादी और देवसूरि प्रतिवादी हैं । वादी प्रतिवादी दोनों के बीच में इस प्रकार शत हुई कि देवसरि वाद में हार जाय तो वे और समस्त श्वेताम्बर दिगम्बर हो जाएं और कुमुदचन्द्र हार जाय तो वे गुजरात छोड़ कर चले जाय। यहां पाठक समझ सकते हैं कि देवसूरि की प्रतिज्ञा कितनी कड़ी थी? क्योंकि सरिजी को अपनी प्रात्मशक्ति पर पूरा विश्वास था। वि० सं० ११८१ के वैशाख शुक्ला पुर्णिमा के शुभ दिन में यह वाद भारम्भ हुआ । राजसभा में वादी प्रतिवादी उपस्थित हुए । सभापति के स्थान पर स्वयं गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह बैठे । उत्साहसागर, महर्षि और राम नाम के तीन विद्वान राजा के सलाहकार नियुक्त हुए । कुमुदचन्द्र के पक्ष में केशवादि नाम के तीन पंडित नियुक्त हुए। और देवर के पक्ष में पौरवाड़ माति के महान कवि श्रीपाल और भानु नाम के विद्वान थे ।

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