Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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गाय को बेचने वाले नराधमों से भी अधिक क्रूर हैं। ऐसे जिन्दे मांस को बेचने वाले पापी मांबाप को देखकर मुर्दे मांस को बेचने वाले कसाई भी थर २ कांप उठते हैं । परन्तु मुझे ऐसे मांस को बेचने वाले नराधम मांचापों से भी जीते मांस को खरीदने वाले बुड्ढे अधिक चंडाल मालूम होते हैं । ये काफिर बुड्ढ़े लक्ष्मी की थैलिये सामने घर कर बालिका के मांबापों को बालिका का जिन्दा मांस बेचने को ललचाते हैं और फिर ये अधम नीच प्रकृति हृदयशून्य मांबाप उन हरामखोर बुड्ढ़ों के राक्षसीय प्रलोभन में फँस जाते हैं और अपनी जीवित युवती कन्या की छाती पर मूंग दलते हैं ।
यदि १२ या १४ वर्ष के लड़के की एक ४५, ५० वर्ष की बुड्ढी के साथ शादी की जाय, तो उस लड़के को कितना त्रास मालूम होगा । इसी तरह १२ या १४ वर्ष की कन्या को ४५ या ५० वर्ष की अवस्थावाले के साथ विवाहग्रन्थी में गुंथने से क्या उस कन्या के हृदय में दुःख का दावानल नहीं प्रगट होगा ? तो भी उसकी परवाह किये बिना कन्या को बेचने वाला और लेने वाला भयङ्कर पापगठरी उठाने के साथ २ समाज और धर्म का जितना द्रोह करता है उससे भी अधिक द्रोह वे मनुष्य करते हैं कि जो ऐसे पैशाचिक विवाह में शामिल होते हैं और इस तरह से यह आसुरी तोफान से समाज में खराबी फैलाने की उत्तेजना करते हैं चाहे वे न्यात के अग्रेसर क्यों न हो ? या सेठ क्यों न हो ? या दूसरे कोई भी हो ? परन्तु ये सब खरीद करने वाले और बेचने वाले चंडालों से भी अधिक क्रूर चंडाल हैं । यदि वे इस भयङ्कर कन्याबलि में शामिल न हो और ऐसे पापी विवाह को निष्ठुरता से फटकार दें, तो ऐसे प्रलयकारी प्रसङ्ग अपने आप बंद हो जाँय ।
जैसे जहां मांसभक्षण करने वाला पशु को मारने नहीं जाता है तो भी वह पशु घातकों में गिना गया है इतना ही नहीं बल्कि हेमचन्द्राचार्य के कथन अनुसार मक्षक ही हत्या करने वाला गिना जाता है, त्यों कन्याबलि के पैशाचिक उत्सव में शामिल होकर मिठाई खाने वाले उस कन्या के द्रोहियों में से मुख्य गिने जाते हैं ।
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* "ये भक्षयन्त्यन्यपलं स्वकीय पलपुष्टये ।
तएव घातका यश वधको भक्षकं विना ॥" ( योग शास्त्र तीसरा प्रकाश )