Book Title: Mahavir 1934 08 to 12 Varsh 01 Ank 05 to 09
Author(s): Tarachand Dosi and Others
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Porwal Maha Sammelan
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विवाह की प्रथा है उन देशों में बाल मृत्यु की संख्या विशेष है। भारतवर्ष में बालमृत्यु की संख्या दूसरे देशों से अधिक है और उसका प्रधान कारण बालविवाह की प्रथा ही है। - छोटी वय में बालकों के कन्धों पर विवाह का बोझा डालना ही खास कर उनके जीवन को बिगाड़ना है । कच्ची उम्र के बालकों को विषयरूपी आग में पटकना यह क्या कम अत्याचार का काम है ? छोटी उम्र में बच्चों को विवाहित करने वाले मांबाप उन बालकों के सारे जीवन पर पानी फिराने का अधम कृत्य करते हैं जिसको कि एक दुश्मन भी नहीं कर सकता। शरीर की जड़ परिपक होने के पहिले कुमार और कुमारी को विवाह के बन्धन में डालना ये ही कुदरत के सामने हमला करने के बराबर है। जरा विचार करो जब तालाब में पानी भरना शुरू होता है और उस पानी को दूसरी तरफ से निकाल दिया जाता है तो क्या तालाब में पानी भर सकेगा । योग्य उम्न होने के पहिले विवाहित तौर पर या उच्छंखल तौर पर अपने सत्व का क्षय करना ही खास कर अपने ऊपर कुठाराघात करने के बराबर है और ऐसा करने से शारीरिक श्राराम किस तरह लिया जा सकेगा ? जिन्दगी के व्यवहार में किस तरह कार्य हो सकेगा ? जिन्दगी को पायमाल बनाने की यह कैसी मूर्खता ? बल क्षय होने बाद याद रक्खो कि चाहे कितनी ही मालती, मकरध्वज या चन्द्रोदय जैसे रसायनिक पदार्थों का सेवन किया जाय, गरमागरम बादाम का हलवा उड़ाया जाय और गरम मशालादार दूध पिया जाय तो भी शरीर का नष्ट हुमा भाग फिर कभी नहीं दुरुस्त होने वाला है। जिसने अपना सत्व सम्भाल कर रखा है उसके लिये सूखी रोटी मकरध्वज समान है और जिसने अपने शरीर के सत्त्व को खो दिया है उसके लिये कितने ही पौष्टिक पदार्थ भी निरर्थक हैं । बीस वर्ष की भर जवानी में भाजकल के नवयुवक अधिकांश पीले और फीके मुँह वाले मालूम होते हैं। जिन युवकों में से देश का सैना बल खड़ा करने की प्राशा रक्खी जाती है, उन्हीं युवकों की यह दशा! शरीररूपी गने में से रस निकलते ही शरीर गन्ने के कूचा जैसा बन जाता है। शरीररूपी दही में से सत्त्वरूपी माखन निकल जाने से शरीर छास के पानी के माफिक निःसत्त्व रह जाता है। ब्रह्मचर्य की अगाध शक्ति है और वर योग्य उम्र तक सम्भालने में भावे और विवाहित होने बाद भी मर्या