Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 103
________________ गागर में सागर इस कृति में छोटी-छोटी कथाओं का समावेश है। ये लघु कथाएं हृदय को छूती हैं और अध्येता को झकझोर देती हैं। स्वयं लेखक इस बात को स्वीकार करते हैं कि जो बात हजार पृष्ठों में नहीं समझाई जा सकती जो बात हजार बार कहने से भी ग्राह्य नहीं बनती, वही बात एक छोटी सी कथा समझा सकती है। कथा साहित्य सबके लिए समान रूप से ग्राह्य होता है। बच्चे-बूढे, स्त्री-पुरुष, पढ़े-लिखे या अनपढ-- सभी कहानी को चाव से सुनते हैं। कथाओं के माध्यम से धर्म तत्त्व या गूढतम दार्शनिक तथ्य को समझाने में सरलता होती है। प्रत्येक वर्ग और जाति में कथाओं का प्रचलन रहा है और कथाओं ने संस्कृति और सभ्यता की सुरक्षा भी की है। प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न बोधपाठों से संबंधित ४३ कथाएं हैं। इनके पठन से व्यक्ति आनन्द से आप्लावित हुए बिना नहीं रहता । कथाओं की भाषा अलंकारिक और प्रसादगुण-युक्त है। महाप्रज्ञ की कथाएं [भाग १-५] मानव मन को पुलकित एवं रंजित करने के लिए बात को जिस विधा में कहा गया साहित्य के क्षेत्र में, वह विधा कथा कहलाने लगी। कथा के बारे में अपना मंतव्य प्रस्तुत करते हुए लेखक कहते हैं---'आदमी मर जाता है, पदार्थ नष्ट हो जाता है, वस्तुएं विलुप्त हो जाती हैं, पर कहानी का सत्य कभी नहीं मरता । वह सदा जीवन्त सत्य है । कथा जीवन्त सत्य को अभिव्यक्त करती है । नवयुवती की भांति उसका सौन्दर्य, नवयुवक की भांति उसकी गतिशीलता और नए युग की नई चेतना की भांति उसकी प्रेरकता जगत् के कणकण को आन्दोलित करती रहती है।' तीन दशक पहले तक युवाचार्यश्री दर्शन की सचाई को दर्शन की भाषा में प्रस्तुत करते थे। वे कहानी की भाषा से अनजान थे। कुछ समय पश्चात् आपको आचार्यश्री की प्रेरणा मिली और तब आप दर्शन की भाषा के साथ कहानी की भाषा को जोड़ने लगे और तब जनता ने आपकी अभिव्यक्ति को जाना, सराहा। अब आप दर्शन की सचाई को भी कहानी की भाषा में कहते हैं और सुनने वाले दर्शन की गहन तत्त्वचर्चा को भी सरलता से हृदयंगम कर लेते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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