Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 213
________________ १७ भाव अनुभव १२७ भाव १०५ २४ भाव भाव अनुभव गूंजते गूजते १०१ १८६ गूजते १२४ यन्त्र और चैतन्य यह और वह यह कैसा आश्चर्य ? यह कैसा ज्ञान ? यह कैसा साम्य ? यह कैसा स्वाद ? यह बिजली का युग है यह भार कोई उठाए यह मन की चिड़िया यह मुक्ति यह मेरे आकार की पहचान है यह सच है यहां और वहां याचना याचना यात्रा का निर्वाह यात्रा का निर्वाह याद रह-रह आ रही है युवक वह था ये लड़ाई और झगड़े ये हमारी आंखें १२२ भाव गूंजते गूंजते अनुभव नास्ति विजय नास्ति विजय १२८ ७० फूल भाव ११४ गूंजते ७८ गूंजते ४४ १०० रंगमंच रंगमंच रात की अंधियारी में रूढिवाद की अन्त्येष्टि रूढिवाद की अन्त्येष्टि रेचक प्राणायाम रेचक प्राणायाम रोटी और पुरुषार्थ रोटी और मानवता नास्ति विजय गूंजते विजय नास्ति नास्ति विजय ११० ५८ भाव १२४ १०० १०१ भाव गद्य-पद्य काव्य / ८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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