Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 239
________________ مہ ہ ہ १२२ ہ ہ ہ ہ ر h ر १०० م mm ه له م له » मुर्गा मूंछ का बाल मूखों से मूल की मजबूती मूल दृढ़ है मूल से आगे मूल-स्वरूप मूल्यवान् कौन ? मूल्यांकन मूल्यांकन की दृष्टि मेरा काम मेरा धर्म है मेरा पति बड़ा विचित्र है मेरी इच्छा मेरी रेखा मेरे साथ चलो मैं अपना गुरु हूं मैं अपने घर में था मैं अपराधी नहीं हूं मैं आजाद हूं मैं आपका भक्त हूं मैं आराधना कर रहा था मैं आश्वस्त हूं मैं इतना मूर्ख नहीं हूं मैं उन्हें दायित्व सौंपता हूं मैं कच्चा मित्र नहीं हूं मैं कहता हूं मैं कहां से दूं? मैं काम करूंगा मैं किसको क्षमा करूं? له له mis Mr mrr» » ४५ : س م س » ४५ » » ७६ » » » مر Y مر ४७ س २४ سه कथा साहित्य | ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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