Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 241
________________ ६४ ر له مر مر » » १०२ س क » मैं लुढ़कन खा रहा हूं मैं वहां नहीं जाऊंगी मैं संस्कृत नहीं जानता मैं सच्चा हूं मैं समझ गया मैं स्वामी हूं मैं हरामजादा हूं मैं ही इसको दंड दूंगा मैं ही डॉक्टर हूं मैं ही बचा हूं मैं ही हूं ग्रेमाल्डी मैत्रों का धरातल मोहजनित-आग्रह मौत से अभय मौन मौन की भाषा मौसेरा भाई س س س १७ مه ४७ م ४६ ب १६० س م १३० ه १२१ गागर ي ه १०६ م यमराज की दीर्घ-दृष्टि यह कैसे सम्भव है ! यह तो बड़ा चोर है यह वही बैल है युक्ति ये घाव क्या कहते हैं ? येन-केन प्रकारेण ये भी बीत जायेंगे س مر » ९४ س » » रक्स चाइल्ड रचनात्मक दृष्टिकोण रवीन्द्रनाथ टैगोर रस का चमत्कार » ११२ » ४४ कथा साहित्य | ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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