Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 240
________________ मैं कौन हूं ? मैं कौन हूं ? मैं क्या करूं ? मैं क्या करूं ? मैं क्या करूं ? मैं क्या बताऊं मैं क्यों चुकाऊं मैं गीता पढ़ता रहूंगा मैं चढ़ना नहीं चाहता मैं चल नहीं सकता मैं जल रही हूं मैं जानता हूं मैं जानता हूं मैं जानती हूं मैं तो छोटा डकैत हूं मैं तो छोटा हूं मैं तो जा रहा हूं मैं दुनियां का सर्वश्रेष्ठ आदमी हूं मैं देख रहा था मैं नग्न हो जाऊं मैं नदी में नहीं उतरूंगा मैं नहीं कह सकता मैं नहीं चलूंगी मैं नियम का अपवाद नहीं हूं मैं पंडित नेहरू बोल रहा हूं मैं पकड़ा गया मैं बीमार हूं मैं भूल गया मैं मनुष्य हूं मैं लाचार हूं ११६ / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण Jain Education International कथा 36 15 " " ," " ·" " 37 33 " 31 " " " 33 33 " " 33 37 در 22 2 93 13 11 11 11 " 17 For Private & Personal Use Only ل ४ ५ X ५ ४ ४ ५ ३ ५ ४ १७ २२ २५ १०८ २५ ४८ २४ ५१ ५१ ७६ ३६ २८ ६१ १८ ८४ ७२ ४० ६५ ८८ २८ १८ १०१ २० ५५ ११८ १११ २ १०१ १८ २४ www.jainelibrary.org

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