Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 222
________________ مي 2 م Kज س m अनुभवहीनता अनुभूति की तीव्रता अनुशासन अनेक काम अनोखापन अनोखा सपना م १३४ س مر अन्तर » ~ م अन्तर में प्रेम अन्धा मित्र م ४० م गागर ३० . w कथा س س w م w w ه مه ४६ » مه अन्यथा अन्याय की जड़ गहरी नहीं होती अपना-अपना दृष्टिकोण अपना अपना मूल्य अपना-अपना स्वभाव अपनी धुन अपने को अच्छा बनाओ अपनेपन का आग्रह अपराध अब कैसे काढू अब क्या डरेगा ! अब वे रत्न नहीं रहे अभय की साधना अभयदान अभी नहीं अभेदानुभूति अमरत्व की खोज अम्म : निम्म अरबपति का अरबपति अर्थ का अनर्थ ११२ ८८ به س १०६ س س > ० مد ० ० गागर कथा عمر ४३ कथा २ १४६ m गागर m अवदान कथा ० २ १८ / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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