Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 231
________________ तुम एक काम करो तुम एकान्त में चले जाओ तुम कल्पना करो तुम कौन हो ? तुम क्या करोगे ? तुम चिन्ता मत करो तुम झूठे हो तुम ठीक कहती हो तुम थाने में क्यों गए ? तुम दोनों सही हो तुम नहीं जानतीं तुम निष्णात हो तुम पागल हो तुम बहुत भोले हो तुम बेवकूफ हो तुम मान लो तुम मान लो तुम मूर्ख हो तुम मूर्ख हो तुम मूर्ख हो तुम योग्य नहीं हो तुम योग्य हो तुम वज्रमूर्ख हो तुम विचित्र मित्र हो तुम शरीर से मत उलझो तुम सचाई को नहीं जानते तुम सबको मालवीय बनना है तुम्बे की बेल तुम्हारा त्याग और मेरा त्याग तेजस्विता का सूत्र Jain Education International कथा " 31 37 33 14 ܝ در 37 " " 37 37 ,, 11 ار " #7 " 39 91 " 37 "1 ") 33 " "1 " " For Private & Personal Use Only ܡ ४ ५ २ ४ m ५ ३ ४ ५ ३२ ३१ १०६ दह ६३ ३१ १३८ १२६ कथा साहित्य / १०७ ५ १०३ ५३ ५२ १७ ४६ २ ८७ ह ११६ ३८ ३३ ३४ १६ २६ ६३ ३२ २० ३१ २१ ३० ५६ १८ ८७ www.jainelibrary.org

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