Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 225
________________ इतना उदास क्यों ? इन्द्रासन इन्द्रिय- ज्ञान को खाली रखें इन्द्रियातीत चेतना इसका क्या कारण है ? इसमें क्या बात है ? इसमें प्राण नहीं है इसीलिए इतना नाम है ईमानदारी ईर्ष्या ईर्ष्या उत्कृष्ट वात्सल्य उत्तरदायित्व उदरंभरी उद्देश्य उधार ही उधार उनका जागना अच्छा है उपदेश का प्रभाव उपाधि : एक समस्या उपेक्षा उल्लासकारी कल्याणकारी उसने सोचा उसमें न फंस जाऊं उससे पहले ऋणमुक्ति एक के लिए सब एक दुकान : दो काम एकनाथ : तुकाराम एकवचन : बहुवचन Jain Education International कथा در " 13 " 31 "" 23 11 == " 33 " " 33 37 131 " 11 " 13 गागर कथा 13 " 33 33 33 " 13 19 For Private & Personal Use Only ܡ mo ४ WW ५ ove ३ ov ३ ५ o m M ov २ ५ ११८ ११६ १२१ ३४ ११२ ११० ८७ Y ७८ ७६ २६ ६ ३ ५८ ८१ ८३ १३५ कथा साहित्य / १०१ ५६ ६० ८७ ६१ ८६ १२५ ५७ ५७ २४ ५६ १६ ११० ११० १७ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252