Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 226
________________ एक व्यंग्य एक हाथ का शब्द ऐसा तो हो सकता है ऐसा बीज और काम ही क्या है ? और कुछ नहीं कच्चा जूता कठोर कार्य कब करोगे ? कमबख्त करुणा कर्तव्य-बोध कलम और छुरी कला का मूल्य कल्पना कल्पना की पीड़ा कवि और सूर्य कषाय-चेतना का परिणाम कसोटी काम में लो कायोत्सर्ग का कवच काल करे सो आज कर कि ताए विज्जाए ? कितना उठता था ? कितना उपकारी ! कितना बड़ा लड्डू कितना मूर्ख ! कितना समर्पण कितने मूर्ख कितने मूर्ख १०२ / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण Jain Education International कथा 21 31 37 31 77 कथा 3 11 11 31 ܙܙ "" " 11 37 23 11 31 " गागर कथा " "3 "" 37 " " 33 " " 31 For Private & Personal Use Only ܡ १ ५ ३ ५ २ X ३ ६२ ६६ ५४ ६६ ८० ११२ १०० १५५ ८५ ४५ ८२ ४६ २६. २६ ८५. ८४ ११६ १३४ २५ ४० ५५ १३२ १३३ ७५ ६४ २२ ६४ १३१ ११४ ६४ www.jainelibrary.org

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