Book Title: Mahapragna Sahitya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 212
________________ मुखर : मौन मुझे और कुछ नहीं चाहिए प्रकाश चाहिए मूल में भूल मूल्य मूल्यांकन मूल्यांकन मूल्यांकन मृत्यु और जीवन मृत्यु- महोत्सव मेरा देश मेरे आचार्य मेरे देव मेरे भगवान् ! मैं उन चट्टानों को याद करूं मैं और मेरा मैं और मेरा मैं और वह अनुभव मैं कैसे मानूं ? अनुभव मैं जब-जब इन गगनचुम्बी किलों को देखता हूं गूंजते मैं तुम्हें नहीं पढ़ सका हूं गूंजते मैंने कब कहा – तुम गधे हो गूंजते मैंने क्या किया ? अनुभव गूंज मैंने तुम्हारे अनेक प्रतिबिम्ब देखे मोह मोत मौन मौन रहूं या बोलूं यथार्थ यथार्थता $35 / महाप्रज्ञ साहित्य : एक सर्वेक्षण बन्दी गूंजते गूंजते फूल अनुभव भाव विजय नास्ति Jain Education International फूल भाव विजय अनुभव गूंजते गूंजते गूंज विजय नास्ति बन्दी फूल भाव फूल नास्ति बन्दी For Private & Personal Use Only w x x w is r १ ४२ ५१ ६२ ८२ ५८ ७८ ३३ द ५८ ८ ११८ १ २६ ११७ १३४ ६३ १३१ ४३ १२ १०० १०४ १०७ १०७ ८४ ५२ २१ ५४ ३४ ३ www.jainelibrary.org

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