Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ किन्तराम् उच्चस्तमाम् / / 13 / / प्रकृष्टे तमप्, द्वयोविभागे तरप् / क्त्वातुममन्तं चाव्ययं / प्राक्काले तुल्यकर्तृकाद्धातोः क्त्वा, भुक्त्वा व्रजति / / 14 / / अनञः क्त्वो यप् / समासे, नेत्रे निमील्य हसति // 15 / / रुणम् चाभीक्ष्ण्ये / प्राकाले चात् क्त्वा / / 16 / / भृशाभीक्ष्ण्याविच्छेदे द्विः / भोज भोज भुक्त्वा वा व्रजति // 17 / / क्रियायां क्रियार्थायां तुमणकच्भविष्यन्ती / भोक्तुं भोजको भोक्ष्य इति वा व्रजति // 18 // गतिः / अव्ययम् / / 19 / / धातोः पूजार्थस्वतिगतार्थावधिपर्यतिक्रमार्थातिवर्जः प्रादिरुपसर्गः / स च धातोः प्राक् / धात्वर्थ बाधते कश्चित्कश्चित्तमनुवर्तते / तमेव विशिनष्टयन्योऽनर्थकोऽन्यः प्रयोज्यते // 1 // प्रतीक्षते अधीते प्राणिति विजयते // 20 // ऊर्याद्यनुकरणच्चिडाचश्चा / अनुकरणा ऊर्याद्या: च्चिडाजन्तं उपसर्गाश्च धातोः प्राक् गतिसंज्ञाश्च, ऊरीकृत्य पटपटाकृत्य / कारि. कालंसदसत्अन्तरदःकणेमनःपुरोऽस्तंतिरसमध्येपदेनिवचनेमनस्युरसिउपाजेऽन्वाजेऽधिसाक्षादाहिस्तेपाणौप्राध्वंजोविकेत्याद्या अर्थविशेषै गतिसंज्ञकाः // 21 //
Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134