Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 111
________________ 106 णौ सन्डे वेडो गाः / अध्यजीगपत् अध्यापिपत् याययति / 50 / डे पिवः पीप्य् / अपीप्यत् // इतिणिगन्ताः // // 3 / / सन्नन्तप्रक्रियाः // ॥१॥तुमर्हादिच्छायांसलतत्सनः / भवितुमिच्छति // 2 // नामिनोऽनिट् सन् कित् // 3 // ग्रहगुहश्च सनो नादिरिट् / चादोः बुभूषति अबुभूषीत // 4 // रुदविदमुषग्रहस्वपप्रच्छ: सन् च कित्, चात्क्त्वा / उपान्त्ये नामिन्यनिट् सन् कित् जिघृक्षति / / 5 / / स्वपो णावुः पूर्वस्य, सुत्रापयिषति / सुषुप्सति / // 6 // ऋस्मिपूङ अशौकगृधृप्रच्छः सन आदिरिट, प्राग्वत् सनः / आत्मने, पिपविषते अरिरिषति चिकरिषति // 7 // स्वरहन्गमो धुटि सनि दीर्घः / विचीपति चिकीषति जिघांसति / // 8 // तनो वा / तितांसति तितंसति // 9 // सनीडश्न गमुरज्ञाने / चादिणिकोः / अधिजिगांसते जिगमिषति // 10 // इवृधभ्रस्जदम्भयर्णभरज्ञपिसनितनिपतिवद्दरिद्रः / सन आदिरिड् वा // 11 // अनुनासिके च च्छवः शूट, चात्क्त्वि धुटि प्रत्यये च, दुद्यूषति दिदेविषति // 12 // ऋध इत्त सि सनि वा। इहँति अदिधिषति बिभ्रक्षति बिभक्षति बिभ्रजिषति // 13 // दम्भो धिप धीप सि सनि, धिप्सति धीप्सति

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