Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ आत्मानं पण्डितं मन्यते पण्डितंमन्यः पण्डितमानी च // 8 // बहुविध्वरुस्तिलात्तुदः / अरुन्तुदः / / 8 / / नग्नपलितप्रियान्धस्थूलसुभगाढयतदन्तात् च्वेयर्थेऽच्येवः खिष्णुखुकञ् / आढयंभविष्णु: आढयंभावुकः 82 कृगः खनट् / करणे च्च्यर्थेऽच्वेः, अन्धंक रणं / 83 // नाम्नो गमः खड्डौ च / चात्खः तुरङ्गः तुरगः तुरङ्गमः // 84 / / पाादिभ्यः शीडोऽत् / पार्श्वशयः / / 85 / / चरेष्टः / कुरुचरो // 86 // पुरोऽग्रतोग्रेसर्तेः / अग्रेसरः / / 87 / / स्थापास्नात्रः कः / शमस्थः / 886. दुहेर्दुघः / कामदुधा // 89 // भजोविण / अधं भजतीति अर्धभाक् / // 90 / / मन्वन्क्वनिवित् / क्वचित् शर्म // 91 // वन्याङ् पञ्चमस्य / विजावा पीवरी कृत्वा शुभया: / / 921 // क्विप् / धातोः, पा: वाः कीः // 93 // क्वौ इस् आसः शासः / मित्रशी: // 14 // आङ: / आशीः // 95 / / गमां क्वौ लुक् / जनगत् // 96 // छदेरिस्मन्त्रट क्वौ / धामच्छद् / ऋत्विक दधृक् उष्णिक् // 97 / / कर्तुणिन् / उपमानात्, सिंह इव नर्दतीति सिंहनी / / 98 // अजाते. शोले / शीतभोजी / / 99 / साधौ / चारु नृत्यति चारुनर्ती // 100 // ब्रह्मभ्रू गवृत्राद् भूते हनः / क्विम् / वृत्रहा / / 101 / / कृगः सुपुण्यपापकर्न मन्त्रालय
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