Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 128 कथंकारं करोति / / 245 // शापे व्याप्यात् / चौरंकारमाक्रोशति // 24 // यावतो विन्दजीवः कात्स्न्ये णम् / यावद्वेत्ति तावद् भुङ्क्ते यावद्वेदं भूक्ते / 247 / चर्मोदरात्पूरेः वृष्टिमान ऊलुक् च / गोप्पदप्रं / .. // 248 / / शुष्कचूर्णरुक्षात्पिषस्तस्यैव / चूर्णपेंषं पिनष्टि / / 249 // कृग्ग्रहोऽकृतजीवात् / जीवग्राहं गृह्णाति // 250 / / निमूलात् कषः // 251 // हनश्च समूलात् / समूलकाषं कषति // 252 / / करणेभ्यः / अस्युपघातं हन्ति // 253 / / स्वस्नेहनात्पुषःपिषः // 254 // हस्तार्थाद्ग्रहत्तिवृतः // 255 // कर्तुर्जीवपुरुषान्नश्वहः // 256 / / ऊर्ध्वात्पू: शुष // 257 / / व्याप्याच्चेवात् चात्कर्तुः / ओदनपाचं 'पक्व: जमालिनाशं नष्टः / / 258 // ऊर्याद्यनुकरणच्चिडाचश्च गतिः / ऊरीकृत्य पटत्कृत्य कुण्ठीकृत्य लोहिताकृत्य // 259 / / कारिका स्थित्यादौ // 260 / / भूषादरक्षेपेऽलंसदसत् / / 261 / / पुरोऽस्तमव्ययं / 262 / तिरोऽन्त / कृगो नवा तिरस्कृत्य तिरः कृत्वा // 263 / / साक्षादादिश्व्यर्थे / साक्षात्कृत्य नमस्कृत्य // 264 // लोकाच्छेषस्य सिद्धिः / / जीयाद्विश्वेश्वरो वोरो, भव्येभ्यः शाब्दशास्त्रदः / / महानन्दाय तत्त्वार्थबोधाय समवस्तुनाम् // 1 // // इति मध्यमसिद्धप्रभाव्याकरणं समाप्तम् //
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