Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 122 शप्तम् वा // 122 / / दोसोमास्था / इ: किति ति, मितः // 123 // छाशोर्वा / शितः निशातः / 124 / ' धागो हिः / / 125 / / समस्ततहिते वा मो / लुक, संहितं सहितं // 126 // प्रादागस्त / आरंभे क्ते वा, प्रत्तं प्रदत्तं / // 127 / / निविस्वन्ववात् / / 128 // दस्ति / नामिनो दीर्घः, नीत्तं // 129 / / यपि चादो जग्ध् / . चात् कित्ति, जग्धं // 130 // निनद्याः स्नातेः कौशले / षः, निष्णातः नदीष्णातः / 131 // इति निष्ठाः / / 132 / / तत्र क्वसुकानौ / परोक्षायां तद्वच्च तौ, शुश्रुवान् संस्वजान, // 133 / / घसेकस्वरातः क्वसोरादिरिट् / जक्षिवान्, ददिवान् // 134 // गमहनविद्लविशशो वेट / जग्मिवान जगन्वान् // 135 / / शत्रानशौ / सति सस्यौ त्वेष्यति, पचन पक्ष्यन् // 136 // अतो म आने / पचमानः पक्ष्यमाणः // 137 / / वा वेत्तेः / क्वसुः सति, विद्वान विदन् // 138 // वयःशक्तिशीले / सति शानः, कतोहात्मानं वर्णयमानाः / // 139 / / सुद्विषाहः सत्रिशत्रुस्तुत्येऽतृश / अर्हन / / 140 // तृन् शीलधर्मसाधुषु / करणं शीलं धर्मस्तत्र साधु वा कर्ता // 141 // भ्राज्यलग्निराकृग्स: हिरुचिवृतिवृधिचरिप्रजनापत्रप इष्णुः / -सहिष्णु: परिषहान् /
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