Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 116 // 18 // अथ कृदन्तप्रकरणम् / / // 1 // आतुमोऽत्यादि कृत् // 2 / / कर्तरि कृत् / विशेषमन्तरा // 3 / / बहुलं / उक्तैऽन्यत्रापि कृत्. मोहनीयं दानीयः // 4 // व्याप्ये धुरकलिमक पच्यं / कर्तरि, भिदुरा भिदेलिमाः कृटपच्या वा शालयः // 5 // श्लिष्शीस्थासक्सजनरुहज़भजे: क्तः / कर्त्तरि वा, श्लिष्टः शयितः स्थित: रूढः / / 6 / / ऋल्वादेरेषां तो नोऽत्रः / // 7 // स्वरात्कृतो नो णः / जीर्णः // 8 // आरम्भे। यः क्तः सोऽप्यत्र, प्रकृतः कटं // 9 // गत्वाकर्मकपिबभुजे. / यातास्ते, पठितो भवान्, पय: पीता, अन्नं भुक्ताः // 10 // अद्यर्थाचाधारे / चाद्गत्यर्थादेः, इदं तेषां यातं, इदं तेषां जग्धं / / 11 // क्त्वातुमम्भावे / सोऽप्यत्र // 12 // भीमादयोऽपादाने / / 13 / / संप्रदानाञ्चान्यत्रोणादयः / चादपादानात् / / 14 // ऋवर्णव्यञ्जनाद् / ध्यण, कार्यं // 15 // तनिटश्चजोः कगौ / घिति, पाक्यं // 16 // उवर्णादावश्यके / लाव्यं // 17 // ध्याण्यावश्यके न / कगौ / / 18 / / निप्राधुजः शक्ये / नियोज्यः // 19 // णिन् चावश्यकाधमये / चात्कृत्याः, अवश्यंकारी शतंदायी गेयः / // 20 // आसुयुवपिरपिलपित्रपिडिपिदभिचम्यानमो
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