Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 115
________________ इव चाचरति पुत्रीयति प्रासादीयति च, शिष्यं कुटी चेत्यर्थः / अमव्ययेत्येवेति इदं काम्यति / ... - // 11 // कर्तुः क्विप् गल्भक्लीबहोडात्तु ङित् / उपमानादाचारे, राजेबाचरतीति राजानति होडते // 12 / / क्यङ कर्तुंरुपमानात् / हंसायते // 13 // सो वा / लुक्, पयायते पयस्यते // 14 / / ओजोऽप्सरसः सो लुक् / अप्सरायते कुमारायते पाचिकायते कवयति अमालासीत् // 15 // व्यर्थे , भृशादेः स्तोर्लुक् कर्तुं क्यङ् / भृशायते, उत्सुकचपलपण्डितद्रभद्राः, दुर्मनायते वेहायते उदमनायत औढीयत // 16 / / डाच् लोहितादिभ्यः / षिक्यङ् च्च्यर्थे, लोहितायते, अलोहितं लोहितं भवतीत्यर्थः, चर्महर्षगर्वनिद्राकरुणाः / - // 17 // क्यफोनवाऽऽत्मने / सुखायति सुखायते // 18 // कष्टकक्षकृच्छ्रसत्रगहनाय पापे क्रमणे क्यङ् / कृच्छ्रायते // 19 // सुखादेरनुभवे / सुखायते, अलीक कृपण // 20 // शब्दादेः कृतौ वा / शब्दं करोतीति शब्दायते, वैरकलहवेगयुद्धमेघाः // 21 // तपसः क्यन् / तपस्यति // 22 / / नमोवरिवश्चित्रकोऽर्चासेवाश्चर्ये // 23 // चीवरात्परिधानार्जने / णिङ्, परिचीवरयते // 24 // णिज्बहुलं नाम्न कृमादिषु // 25 / / त्र्यन्त्यस्वरादेर्लुक् गीष्ठेयसौ / तिलकयति त्रिलोकीम् /

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