Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ // 99 // तत आगते / माथुरः दैत्यः ग्रामीणः नादेयः // 100 // पितुर्यो वा। पैतृकं पित्र्यं / / 101 // तस्येदं / भानोरियं भावनीया, ईयणादयः // 102 // शिलालिपाराशर्यानटभिक्षुसूत्रे / णिन्, शैलालिनो नटाः // 103 // उपज्ञाते / सिद्धेनोपज्ञाता सैद्धीया // 104 // कृते / क्षमाश्रमणेन कृतं क्षमाश्रमणीयं // 105 / / कुलालादेरकञ् / कौलालकः // 106 // सेनिवासादस्य / प्रथमान्तनिवासादस्येत्यर्थे इयादयः, राष्ट्रियः / / 107 // तेन जितजयद्दीव्यत्खनत्सु इक्ण / भरतेन जितं जयन्दीव्यन्खनँश्च भारतिकः // 108 // संस्कृते संसृष्टे तरति चरति / / 1.09 / / वेतनादेर्जीवति / वैतनिकः जालिकः / / 110 // आयुधादीयश्च / प्राहरणिकः प्राहरणीयः॥१११॥ ओजःसहोऽम्भसो वर्तते / ओजसा वर्त्तते औजसिकः // 112 // पक्षिमत्स्यमृगार्थाद् घ्नति / मत्स्यान् हन्ति मात्सिकः // 113 / / परदारादिभ्यो गच्छति / पारदारिकः // 114 / / धर्माधर्माच्चरति / धर्ममाचरति धार्मिकः // 115 / / तदस्य पण्यं / गन्धोऽस्य पण्यं गान्धिकः // 116 // शिल्पं / तान्तुवायिकः // 117 / / शोलं / पारुषिकः // 118 // प्रहरणं। आसिकः // 119 / / भक्ष्यं // 120 // हितमस्मै / लौकिकं // 121 // सशयं प्राप्ते ज्ञेये /
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/83e2aa3278481a3e6099c8798a31d61e2a93bd2ede2acf294c52952b58398af6.jpg)
Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134