Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ - // 7 / / कुषिरञ्जयाप्ये वा परस्मै च / कर्त्तरि श्यः, रज्यति स्वयं वत्रं, अरांक्षीत् / मेधृग मेधाहिंसासंगमेषु / बुधृग बोधने, अबोधीत् / खनूग अवदारणे, अखानीत् अखनीत् चख्ने खायात खन्यात् / दानी अवखण्डने, दोदांसते / शानी तेजने, शीशांसते / शपो आक्रोशे / अलो भूषणपर्याप्तिवारणेषु / धावूग गतिशुद्धयोः / भेषग भये / लषी कान्तौ, लष्यति लषति लषते / चषी भक्षणे / , त्विषी दीप्तौ / दासृग दाने / माग माने / मुहौग संवरणे // 8 // गोहः स्वरे / उपान्त्यस्योत् , निगूहते // 9 // स्वरेऽतः / सको लुक , अघुक्षाताम् अघुक्षन्त // 10 // दुहदिहलिहगुहो / दन्त्यात्मने वा सको लुक , अगुह्वहि, अघुक्षावहि / / इत्युभयपदं // 3 // // 4 // स्वादिषुद्युतादिवृतादीप // . द्युति दीप्तौ, द्योतते // 1 // द्युद्भ्योऽद्यतन्यां / वात्मने, अद्युतत अद्योतिष्ट // 2 // द्युतेरिः / पूर्वस्य परोक्षायां, दिद्युते / रुचि अभिप्रीत्यां च / शुभि दीप्तौ / क्षुभी संचलने / भूङ् विश्वासे / भ्रंशूङ स्रंसूङ् अवस्रंसने / ध्वंसूग् गतौ च / वृतुङ् वर्त्तने, अवृतत् अवर्तिष्ट // 3 // न वृद्भयः / परस्मै स्ताद्य शित इट / / 4 // सिजाशिषावात्मने / नाम्युपान्त्येऽनिटौ
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