Book Title: Madhyam Siddh Prabha Vyakaranam
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 22
________________ // 14 // दी| नाम्यतिसृचतसृषः / समानस्य, देवानाम् देवे देवयोः // 15 // नाम्यन्तःस्थाकवर्गात पदावान्त कृतस्य सः शिङ्नान्तरेऽपिषः / देवेषु / / सर्व विश्व उभ उभय अन्य अन्यतर इतर डतरडतमौ प्रत्ययौ तदन्तौ ततोऽत्र त्व त्वत् समसिमौ सर्वार्थो. पूर्वपरावरदक्षिणोत्तरापराधराणि व्यवस्थायाम् स्बमज्ञातिधनाख्यायाम् अन्तरं बहिर्योगोपसंव्यानयोरपुरि त्यद् तद् यद् अदस् इदम् एतद् एक द्वि युष्मद् अस्मद् भवतु किम् एते सर्वाद्यास्त्रिलिङ्गा असंज्ञायाम् // 16 // जसः इः / सर्वादेरदन्तात्, सर्वे // 17 // रषवर्णान्नो ण एकपदेऽनन्त्यमालचटतवर्गशसान्तरे / सर्वेण // 18 // सर्वादेः स्मैस्मातौ / डेङस्योरदन्तात्, सर्वस्मै सर्वस्मात् // 19 / / अवर्णस्यामः साम् / सर्वादेः सर्वेषाम् // 20 // स्मिन् / सर्वादेरतः, सर्वस्मिन् / द्विवचन उभः, उभौ उभाभ्याम् उभयोः / एकत्वबहुत्वयोरुभयः उभये उभयेषां // 21 // नवभ्यः पूर्वेभ्य इस्मास्मिन् वा / पूर्वेभ्य इति पूर्वाद्यन्तरान्तेभ्यः, पूर्वे पूर्वाः परस्मात् परात् अन्तरस्मिन् अन्तरे // 22 // नेमार्धप्रथमचरमतयाल्पकतिपयस्य वाऽतो जस इ., प्रथमे प्रथमाः, तयायौ प्रत्ययौ

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