Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 132
________________ लेश्या और मनोविज्ञान 1. असभ्य व्यक्ति के आभामण्डल से निकलने वाली विकिरणें धुंधली - पीली, स्लेटी मिश्रित - नीली धुंधली नारंगी और भूरी लाल रंग की होती हैं। ये किरणें अस्त-व्यस्त और धब्बेदार दिखती हैं। 122 2. सभ्य व्यक्ति के आभामण्डल में उच्च-स्तरीय किरणें होती हैं। उसके आभामण्डल पीला रंग, शुद्ध लाल और साफ नीला रंग अधिक होता है। संवेगात्मक स्थिति में काला तथा लाल रंग क्रोध के समय विकिरित होता है। भय की अवस्था में धुंधला स्लेटी रंग होता है । भक्ति के समय नीला रंग निकलता है । 3. अतिमानव का ओरा शानदार तथा सूर्यास्त के रंग जैसा होता है। उसके सिर के चारों ओर पीले रंग की तेज किरणों का वलय होता है।' जैन दर्शन में लेश्या के आधार पर आभामण्डल के छः प्रकार बन जाते हैं, क्योंकि लेश्या के छ : वर्ण निर्धारित हैं और इन्हीं वर्णों के साथ मनुष्य के विचार और भाव बनते हैं, चरित्र निर्मित होता है । वर्ण और भाव परस्पर प्रभावक तत्त्व हैं। वर्ण की विशदता और अविशदता के आधार पर भावों की प्रशस्तता और अप्रशस्तता निर्मित होती है। हम भावधारा को साक्षात् देख नहीं पाते, इसलिए व्यक्ति के आभामण्डल में उभरने वाले रंगों को देखकर भावों को जानते हैं । वर्ण : व्यक्तित्व की गुणात्मक पहचान आभामण्डल में काले रंग (कृष्ण) की प्रधानता हो तो मानना चाहिए कि व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक् नहीं है, आकांक्षा प्रबल है, प्रमाद प्रचुर है, कषाय का आवेग प्रबल और प्रवृत्ति अशुभ है, मन-वचन और काया का संयम नहीं है, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं है, प्रकृति क्षुद्र है, बिना विचारे काम करता है, क्रूर है और हिंसा में रस लेता है । आभामण्डल में नील वर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है व्यक्ति में ईर्ष्या, दाग्रह, माया, निर्लज्जता, आसक्ति, प्रद्वेष, शठता, प्रमाद, यशलोलुपता, सुख की गवेषणा, प्रकृति की क्षुद्रता, बिना विचारे काम करना, अतपस्विता, अविद्या, हिंसा में प्रवृत्ति - इस प्रकार की भावधारा और प्रवृत्ति है । आभामण्डल में कापोत वर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है - व्यक्ति में वाणी की वक्रता, आचरण की वक्रता, प्रवंचना, अपने दोषों को छिपाने की प्रवृत्ति, मखौल करना, दुष्ट वचन बोलना, चोरी करना, मात्सर्य, मिथ्यादृष्टि इस प्रकार की भावधारा और प्रवृत्ति है । - आभामण्डल में रक्त वर्ण की प्रधानता हो तो माना जा सकता है - व्यक्ति नम्र व्यवहार करने वाला, अचपल, ऋजु, कुतूहल न करने वाला, विनयी, जितेन्द्रिय, मानसिक समाधि वाला, तपस्वी, धर्म में दृढ़ आस्था रखने वाला, पापभीरु और मुक्ति की गवेषणा करने वाला है। 1. Audrey Kargere, Colour and Personality, p. 1-3 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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