Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 225
________________ उपसंहार सम्पूर्ण प्राणी जगत् की लेश्या और उसका रंग निर्धारित करना भी जैनदर्शन की अपनी मौलिक अवधारणा है। किस गति का कौनसा जीव, किस लेश्या यानी किस रंग में जीता है, उसकी द्रव्यलेश्या और भावलेश्या का अलग-अलग प्रतिपादन यहां उपलब्ध होता है । 215 यद्यपि आत्मा का अपना कोई रंग नहीं होता, मगर कर्म से जुड़ी चेतना के कारण रंगों के साथ जीवन जुड़ा है। व्यक्ति जिस लेश्या में मरता है, उसी लेश्या में जनमता है, यह लेश्या की नियामकता है। रंगों के संदर्भ में एक बात और उल्लेखनीय है कि आगमों में भावों को रंगों की विविध उपमाओं से जो पहचान दी गई है, वह अन्य पूर्वी एवं पाश्चात्य धर्मदर्शनों में देखने को नहीं मिलती । व्यक्तित्व के भौतिक एवं आध्यात्मिक पक्ष को एक साथ व्याख्यायित करने की क्षमता लेश्या सिद्धान्त का अपना निजी गुण रहा है। किसी भी रंग को एकान्त रूप से प्रशस्त या अप्रशस्त मानना शायद रंग विज्ञान में स्वीकृत नहीं है। प्रत्येक रंग चाहे वह नीला हो या पीला, अपने विभिन्न गुणों द्वारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व को व्यंजित करता है एवं इस दृष्टि से उसका एकान्त रूप से प्रशस्त या अप्रशस्त होना आवश्यक नहीं है। जैन दर्शन में भी प्रत्येक लेश्या में अनन्त परिणमन हो सकते हैं। परिणमन का आधार रंगों की तरतमता है । विचार भी रंग है - रंग वही नहीं जो हम देखते हैं । महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हम जो सोचते हैं, वही देखते हैं, क्योंकि विचार भी एक प्रकम्पन है। रंग विज्ञान के अनुसार प्रकम्पित विचार रंग में बदलते हैं । Ivan Bergh Whitten के अनुसार विचार और रंग के प्रकम्पनों में सादृश्यता देखी जा सकती है। विचार निश्चित रंग पैदा करता है और व्यक्तित्व को प्रभावित करता है। एनबीसेन्ट और लीडबीटर ने अपनी पुस्तक Thought Form में विचारों का संबंध (Mental and Astral Body) मानसिक एवं कारणिक शरीर से जोड़ा है। उनका मानना है कि विचार रंग पैदा करते हैं और रंगों के आधार पर मन की व्याख्या की जाती है। इस सन्दर्भ में उन्होंने लिखा - व्यक्तित्व की सच्ची पहचान के लिए मन का शांत होना जरूरी है, क्योंकि शांत मन की गति एक ही दिशा में होती है। जब मन में स्वार्थ, अहंकार, द्वेष, वासना, तृष्णा जैसा कोई निषेधात्मक भाव सक्रिय होता है तो मानसिक प्रकम्पनों की गति एक नहीं होती है। जैन-दर्शन में लेश्या के विचारों, भावों को भी हम प्रकम्पन की भाषा में समझ सकते हैं। अत: इस सन्दर्भ में यह सिद्धान्त हमारे सामने आया कि विचार के गुण, प्रकृति और स्थिरता के आधार पर रंग, आकार और स्पष्टता निश्चित की जा सकती है। इसीलिए लेश्या सिद्धान्त में अशुभ से शुभ लेश्या के रूपान्तरण में चित्त की स्थिरता और आवेगों का उपशमन आवश्यक माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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