Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 204
________________ 194 लेश्या और मनोविज्ञान देखें। प्रेक्षाध्यान पद्धति में अनुप्रेक्षा का अभ्यास इसलिए करवाया जाता है कि हम रूढ़ियों को, संस्कारों को, धारणाओं को छोड़कर वास्तविक सच्चाई को देखना सीख सकें।' __ प्रेक्षाध्यान का एक सूत्र है - बौद्धिक विकास और भावनात्मक सन्तुलन। केवल बौद्धिक विकास जीवन को तर्कप्रधान बना देगा, आत्मनियन्त्रण की बात पीछे छूट जाएगी और केवल भावनात्मक विकास विवेक-निर्णय और शक्ति की क्षमता नहीं दे सकेगा। शांतसुधारस भावना में इन दोनों की समन्विति का निर्देशन दिया है - स्फुरति चेतसि भावनया विना, न विदुषामपि शान्त सुधारसः । न च सुखं कृशमप्यमुना विना, जगति मोहविषादविषाऽऽकुले ॥! बिना भावना के विद्वानों के चित्त में शांत सुधारस स्फुरित नहीं होता और उसके अभाव में मोह और विषाद के विष से व्याकुल जगत में स्वल्पमात्र भी सुख प्राप्त नहीं होता। भावना से भावित मन ध्यान में उतरता है। संस्कारों का शोधन करता है । वीतरागता की ओर प्रस्थान करता है। ध्यान का यही क्षण व्यक्ति के आत्मदर्शन का क्षण बनता है। • 1. मन के जीते जीत, पृ. 97 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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