Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 211
________________ रंगध्यान और लेश्या 201 चैतन्यकेन्द्र हमारी चेतना और शक्ति के अभिव्यक्ति केन्द्र माने गए हैं। प्रत्येक चक्र/केन्द्र भौतिक वातावरण और चेतना के स्तरों पर साथ-साथ अंत:क्रिया करता हुआ आभामण्डल में अपनी भिन्न छवियाँ अंकित करता है। इनके प्रतिबिम्ब हमारे विचार और व्यवहार में भी उभरते हैं। रंगध्यान से हमारा तैजस शरीर जागता है। उसके स्पन्दन स्थूल शरीर पर आते हैं। अच्छे-बुरे संस्कार आभामण्डल में रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त होते हैं। यही रंग हमारे मनस् की सूक्ष्म व सही जानकारी देते हैं। रंगध्यान के मुख्य उद्देश्य हैं -1 * आध्यात्मिक गुणों का विकास * एकाग्रता की शक्ति का विकास * निषेधात्मक शक्तियों का अन्त * स्वचिकित्सा की क्षमता के उपयोग में सहयोग * विचार संप्रेषण की शक्ति का जागरण। जैन परम्परा में रंगध्यान - भद्दे आभामण्डल को चमकदार बनाने के लिए रंगध्यान एक अमोघ रसायन है। जीवन की समरसता, सफलता और प्रगति इसके परिणाम हैं । यद्यपि जैन योग में भीतरी रसायनों के बदलाव के 12 उपक्रम (निर्जरा के बारह भेद) उल्लिखित हैं, किन्तु उनमें ध्यान सर्वाधिक सरल और शीघ्र प्रभावी प्रक्रिया है। जैन साधना पद्धति में रंगध्यान की परम्परा बहुत पुरानी है । आवश्यक सूत्र में तीर्थंकर स्तुति के अन्तर्गत अर्हन्तों को चन्द्रमा के समान निर्मल, सूर्य के समान तेजस्वी और सागर के समान गम्भीर बतलाया गया है - "आरुग्गबोहिलाभं समाहिवरमुत्तमंदितु ॥ चन्देसु निम्मलयरा आइच्चेसु अहियं पयासयरा ॥ सागरवरगंभीरा सिद्धासिदिं मम दिसन्तु ॥" इन उपमाओं में श्वेत, लाल और नीले रंग की महत्ता स्वयं स्पष्ट है । ये भावात्मक स्तर पर हमारे आरोग्य, बोधि और समाधि के लिए उत्तरदायी हैं। मंत्रविद् आचार्यों ने नमस्कार महामंत्र की भिन्न-भिन्न चैतन्य केन्द्रों पर भिन्न-भिन्न रंगों के साथ ध्यान करने की चर्चा की है। अभ्यास के बाद उनकी कुछ निष्पत्तियां भी सामने आई हैं, जो इस प्रकार हैं : 1. Colour Meditations, p. 26 Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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