Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 216
________________ लेश्या और मनोविज्ञान इस प्रकार इन तीन लेश्याओं का ध्यान शरीर में उच्च केन्द्रों पर किया जाता है, क्योंकि उच्च केन्द्रों का ध्यान हमें अपनी बुरी मनोवृत्तियों से ऊपर उठाता है। जब हम इन उच्च केन्द्रों के सम्पर्क में आते हैं, तब अन्त:प्रेरणा, बुद्धि और विवेक से हम सक्रिय बनते हैं । हमारे भीतर प्रेम, शान्ति, प्रसन्नता, शक्ति, नम्रता, दयालुता, भक्ति, अन्त:प्रेरणा, विवेक, सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता जैसे दैविक गुणों का प्रादुर्भाव एवं विकास होता है ।' 206 यद्यपि लेश्या ध्यान की अवधारणा आगमिक आधार पर स्थापित नहीं है। आचार्य महाप्रज्ञ ने प्रेक्षाध्यान के अन्य प्रयोगों के साथ लेश्याध्यान को भी विशेष प्रयोजन के साथ उसका अंग स्वीकृत किया है। जरूरी नहीं कि अमुक रंग अमुक केन्द्र पर ही किया जाए। कोई भी रंग किसी भी चैतन्य केन्द्र पर किया जा सकता है। अपेक्षित केवल उद्देश्य के निर्धारण का है । हम कौनसी मनोवृत्ति से मुक्त होना चाहते हैं? क्योंकि मनोदशाओं के साथ रंगों का गहरा संबंध है । रंगध्यान से तैजस शरीर की शक्ति जागृत होती है। जिसका तैजस शरीर जागृत होता है उसकी सन्निधि में आने पर व्यक्ति को पवित्रता, शांति और आनन्द का अनुभव होता है। श्रावक सुदर्शन ने कायोत्सर्ग किया। उसके चारों ओर विद्युत का ऐसा शक्तिशाली वलय बन गया कि प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करने वाले अर्जुनमाली की दानवीय शक्ति उस वलय को भेदने में अक्षम रही। सुदर्शन के शक्तिशाली और पवित्र आभामण्डल ने अर्जुनमाली के मन में परिवर्तन घटित किया और वह हत्यारे से संत बन गया। उसने महावीर के पास प्रव्रज्या ग्रहण कर ली । - इन्द्रभूति गौतम महावीर को पराजित करने के लिए आये थे, किन्तु जैसे ही उन्होंने महावीर के आभामण्डल की परिधि में प्रवेश किया, वे सबकुछ भूल गये और महावीर की पवित्रता से अभिभूत होकर उनका शिष्यत्व स्वीकार कर लिया। जैन साहित्य बतलाता है। अर्हत् प्रवचन के समय समवसरण में जन्मना विरोधी जीव-जन्तु भी शत्रुता भूलकर शांति और प्रेम से प्रवचन सुनते हैं। आचार्य सोमदेव सूरि ने अध्यात्म तरंगिणी में इसी सत्य का प्रतिपादन किया है कि सांप और नेवला, भैंस और घोड़ा तथा हरिणी और व्याघ्र परस्पर क्रीड़ा करने लगते हैं । 2 ऐसा आश्चर्य इसलिए घटित होता है कि महापुरुषों का पवित्र आभावलय उन्हें शांत और उपशमित कर देता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रंगों का ध्यान व्यक्तित्व को बदलने का एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। विशुद्धिकेन्द्र पर नीले रंग, दर्शनकेन्द्र पर अरुण रंग, ज्ञानकेन्द्र (या चाक्षुषकेन्द्र ) पर पीले रंग का और ज्योतिकेन्द्र पर श्वेत रंग का ध्यान किया जाता है। इन केन्द्रों पर ध्यान करने के साथ जो भावना की जाती है, वह इस प्रकार है। - 1. Alex Jones, Seven Mansions of Colour, p. 61; Jain Education International For Private & Personal Use Only 2. अध्यात्मतरंगिणी, 7 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240