Book Title: Leshya aur Manovigyan
Author(s): Shanta Jain
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 209
________________ रंगध्यान और लेश्या 199 किया है। उनका मानना है कि सभी भौतिक (स्थूल/इहलौकिक) संवेदन तीन निम्न केन्द्रों के माध्यम से होते हैं। यदि हममें निषेधात्मक चिन्तन कार्य कर रहा है तो इसका अर्थ है कि हमारे ये तीनों चक्र सक्रिय हैं। इन तीन चक्रों के सम्पर्क में आने से हृदय की आठ कमजोरियां प्रकट होती हैं - 1. भय 2. लज्जा 3.दुःख 4. घृणा 5. निन्दा 6. वंश-अभिमान 7. जाति/आग्रह 8. उत्तरदायित्व के प्रति अजागरूकता।' शरीर शास्त्रीय दृष्टि से भी गोनाड्स व एड्रीनल अन्तःस्रावी ग्रंथियों को बुरी वृत्तियों के जागने का केन्द्र माना गया है। आध्यात्मिक शब्दावली में इन्हें अशुभ लेश्या के अभिव्यक्ति स्थान माने जा सकते हैं। गोनाड्स व एड्रीनल को योगशास्त्र की भाषा में स्वाधिष्ठान चक्र और मणिपुर चक्र कहा जाता है। प्रेक्षाध्यान में इन्हें तैजसकेन्द्र तथा शक्तिकेन्द्र की संज्ञा दी गयी है। __इन केन्द्रों पर उभरने वाला आभामण्डल सदा भद्दा, धुंधला और अस्त-व्यस्त होता है। ऐसे आभामण्डल में जीने वाले मनुष्य शरीर, मन और आत्मा के बीच द्वन्द्वात्मक स्थिति में रहते हैं । अशान्त, असन्तुलित और असंयत जीवन के प्रति भौतिक व्यामोह रहने के कारण उन्हें कभी सुव्यवस्थित जीवन जीने का अवसर भी नहीं मिलता। वेरा स्टैनले एल्डर (Vera Stanley Alder) लिखती हैं कि गहरे, सुस्त (dull) और धुंधले रंग हमारी आत्मा, नैतिकता एवं स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं। ये रंग अपराध, रुकावटें, हीन भावनाएं, आत्महत्या और बलपूर्वक कार्य करवाने की भावना को प्रेरित करते हैं। अत: जीने की दिशा बदलने के लिये शुभ चमकदार रंगों का चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान अपेक्षित है। ध्यान के क्षेत्र में विशिष्ट केन्द्रों की चर्चा न केवल हठयोग/योगशास्त्र में ही स्वीकृत है अपितु चिकित्सा के क्षेत्र में भी इस विषय पर गहरा अध्ययन किया गया है और उसके शोधपरक निष्कर्ष आज हमारे सामने हैं। मस्तिष्क के श्रेष्ठ रंग-रंग चिकित्सा के क्षेत्र में सभी चिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों ने रंगों का प्रयोग मस्तिष्क और सुषुम्ना पर अधिक प्रभावक माना है, क्योंकि सुषुम्ना का स्थान प्राणशक्ति का मूलस्रोत है। संतुलित जीवन-यात्रा और आत्मविकास के क्षेत्र में भी ऊर्ध्वारोहण इसी ऊर्जा द्वारा संभव है। यही ऊर्जा पूरी रीढ़ की हड्डी में अवस्थित सुषुम्ना नाड़ी में फैलकर भिन्न-भिन्न चक्रों/चैतन्य के विशेष केन्द्रों में बंट जाती है। मस्तिष्क सहस्रारचक्र में यही ऊर्जा पूंजीभूत रूप में संगृहीत होती रहती है। मस्तिष्क को ज्ञानेन्द्रिय और कर्मेन्द्रिय का संचालक कहा गया है। रंगध्यान के सन्दर्भ में मस्तिष्क में रंगों का महत्त्व विश्लेषित करते हुए लिखा गया है कि मस्तिष्क के ऊपरी हिस्से में सभी रंग अधिक शुद्ध और अधिक चमकदार नजर आते हैं। 1. Alex Jones, Seven Mansions of Colour, p. 62 Jain Education Interational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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